भविष्य भी महान है
भविष्य भी महान है
भव्य था अतीत और, भविष्य भी महान् है।
इसे सम्हाल लो अगर, जो आज वर्तमान् है।।
सत्य की आधारशिला, हरिशचन्द्र रख गये।
मंदिर मर्यादा का, रामचन्द्र रच गये।
कर्म योग का कलश, कृष्णचन्द्र रख गये।
कोटिशः शहीद जिसकी, अर्चना में खप गये।
प्राणों की आहुती ही प्राण - प्रतिष्ठान है ।।१।।
इसे सम्हाल लो......
भूखे भेड़ियों को भाई, मानकर जो चल रहे।
भावना के ज्वार में, यथार्थ को बदल रहे।
लक्ष्य-दिशा-हीन मृग-मरीचिका में चल रहे।
काल की कराल ठोकरों से, ना सम्हल रहे।
कल का कल्प-वृक्ष में, न कोई प्रावधान है ।। २।।
इसे सम्हाल लो.....
माँ क चीर खींचने को, पुत्र ही मचल रहे।
केशर * क्यारी में, करेंत विष उगल रहे।
गुरुओं की धरती पर, गुमराही पल रहे।
अखण्ड-ज्योति के समान श्मशान जल रहे।
अंग-अंग माँ का, अब तो लहूलुहान है ।। ३।।
इसे सम्हाल लो.......
हिमगिरि के अंगों, वन-पुष्प और पराग में
धधक रहे शोले हैं, सेवों के बाग में।
भ्रान्त अब न होना, भाई चारे के राग में।
नाग डॅस रहे है हमें, घुस अनन्तनाग में।
तीर है काश्मीर में पर, पाक में कमान है ।। ४।।
इसे सम्हाल लो......
वरदान हेतु हठ न कभी, कैकई सा कीजिये।
दुर्योधन सी भूल कर, न कुरुक्षेत्र सींचिये।
यदि युद्ध ही अनिवार्य हो तो, समय पर न चूकिये।
कृष्णार्जुन के समान, कुरुक्षेत्र जीतिये।
मनोरथों की सिद्धि का, यही तो तत्व ज्ञान है ५ ।।
इसे सम्हाल लो.....
दिव्य शस्त्रों से सजी हो, सैन्य कोटि अक्षौणी।
मातृशक्ति साथ हो बन, महिषासुर मर्दिनी।
चाणक्य चन्द्रगुप्त से हो, नीति निपुण अग्रणी।
राष्ट धर्म ध्वज लिए, बढे अजेय वाहिनी।
राष्ट्र की सुरक्षा का, यही तो विधान है ।। ६।।
इसे सम्हाल लो.......