भगवतीचरण और दुर्गा देवी

खतरों से खेलने वाले क्रान्तिकारी पति-पत्नी


भगवतीचरण और दुर्गा देवी


      एक परिवार से दो या दो से अधिक भाई देश के लिए बलिदान हुए हैं, इस प्रकार की वीरतापूर्ण घटना तो आपने कई पढ़ी हैं। किन्तु किसी पति-पत्नी ने क्रान्तिकारी के रूप में अपना सारा जीवन देश की बलिवेदी पर अर्पित पर दिया हो, ऐसी विरली घटना केवल भगवतीचरण और दुर्गादेवी की प्राप्त होती है। वे क्रान्तिकारी क्या थे, लोकैषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणा इन तीनों एषणाओं से ऊपर उठकर एक क्रान्ति-संन्यासी थे, जिनका कुछ भी अपना नहीं था, तन-मन-धन-यौवन सब कुछ देश का था।


      भगवतीचरण के पिता श्री शिवचरण थे जो रेलवे-कार्यालय में ऊंचे पद पर कार्यरत थे। वे लाहौर में रहते थे। भगवतीचरण ने लाहौर के नेशनल कालेज से शिक्षा प्राप्त की। वहीं उनकी भगतसिंह के साथ मित्रता हुई और उन्होंने मिलकर देशसेवा का प्रण लिया तथा 'भारत-सभा' नामक गुप्त संगठन स्थापित किया। भगवतीचरण का विवाह कालेज से सुशिक्षित हुई लड़की दुर्गादेवी से हुआ। भगवतीचरण ने दुर्गादेवी को भी देशभक्ति का पाठ पढ़ाकर क्रान्ति के रंग में रंग लिया। अब दोनों का लक्ष्य था - क्रान्ति के द्वारा देश को आजाद कराना। भगवतीचरण ने भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि के साथ मिलकर कार्य किया |


      भुसावल के बम केस में फणीन्द्र घोष सरकारी गवाह बन गया था। क्रान्तिदल ने उस विश्वासघाती को दण्ड देने का निर्णय लिया। उसके लिए जेल में रिवाल्वर अपनी चतुराई से भगवतीचरण ने ही पहुंचायी थी।


      क्रान्तिकारियों ने बम बनाने के जो गुप्त कारखाने खोले, उनके प्रबन्ध का दायित्व भगवतीचरण पर था। वे बमों का प्रयोग व निर्माण करते रहते थे। १८ मई १९३० को सायंकाल ८.३० के लगभग एक बम लेकर वे परीक्षण के लिए रावी नदी के तट पर गये। वह बम फेंकते समय हाथों में ही फट गया। वे बुरी तरह घायल हो गये। उस जंगल में कोई सहायता करने वाला नहीं था। उसी अवस्था में वे शहीद हो गये |


      दुर्गादेवी ने वैधव्य अवस्था में भी क्रान्ति की ज्वाला को जगाये रखा१७ सितम्बर १९२८ को भगतसिंह के क्रान्तिदल ने सांडर्स पर बम फेंक कर लाला लाजपतराय की हत्या का बदला ले लिया। लाहौर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात थीऐसी विकट स्थिति में भगतसिंह को लाहौर से सुरक्षित निकाल ले जाने वाली बहादुर महिला दुर्गादेवी थी। दुर्गादेवी ने खतरों से खेलकर यह साहस का काम किया। भगतसिंह ने एक साहब का स्वांग भरा और दुर्गादेवी ने उसकी मॉडर्न धर्मपत्नी का। रेल की प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर वे लाहौर से बैठे और भगतसिंह को सुरक्षित कलकत्ता पहुंचाया।


      बम्बई में ९ अक्तूबर १९३१ को रात के समय लैमिंटन रोड थाने में मोटर से उतरते समय सार्जेंट टेलर और उसकी पत्नी को घायल करने वाली दुर्गादेवी ही थी। वह सजा से भी साफ बच गयी। कुछ क्रान्तिकारी उन्हें 'भाभी' और कुछ 'दीदी' सम्बोधन से पुकारते थे। दुर्गादेवी एक जुलूस का नेतृत्व करने के अभियोग में तीन मास जेल भी काट आयीं परन्तु पुलिस को यह पता नहीं चला कि क्रान्तिकारियों की वह 'दीदी' यही है। देहली में जब 'दीदी' की जोरशोर से खोज हुई तो वह लाहौर जेल में भगतसिंह से मिलने पहुंच गयी।


      लाहौर रहते हुए एक असावधानी हो गयी। 'दीदी' के नाम क्रान्तिकारियों का पत्र लेकर एक पत्रवाहक दुर्गादेवी को देने जा रहा था कि वह पत्र रास्ते में गिर गया और पुलिस के हाथ लग गया। पत्रवाहक ने तुरन्त दुर्गादेवी को यह सूचना दी और आशंकित विपत्ति से बचने के लिए कहीं भाग जाने को कहा। पुलिस ने अविलम्ब संदेहास्पद दर्जनों घरों को घेर लिया। दुर्गा अपने बुद्धि कौशल से गिरफ्तारी देखने वाले तमाशबीनों की भीड़ में सम्मिलित होकर नि:शंक खड़ी रहीऔर फिर मौका पाकर ग्रामीण वधू का स्वांग भर, लम्बा चूंघट निकाल, देहाती दिखने वाले एक व्यक्ति के साथ लाहौर से निकल भागी।


 


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