भारत निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल

जन-जन के हृदय सम्राट्, लोहपुरुष


भारत निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल


      सरदार पटेल उन जननायकों में से एक हैं जो भारत की जनता के हृदयों में निवास करते हैं और जिन्होंने देश की सेवा के लिए सर्वस्व अर्पित कर दिया। श्री पटेल जैसे दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेता का ही यह चमत्कार है कि उन्होंने अंग्रेजों द्वारा विखण्डित किये भारत को एक सूत्र में बांध दिया। आज का अखण्ड भारत सरदार पटेल की देन है। दुर्भाग्य यह रहा कि कश्मीर पर कार्यवाही करने का अधिकार सरदार पटेल को नहीं मिला, नहीं तो आज की भयावह कश्मीर समस्या उत्पन्न ही नहीं होती। तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू की राजनीतिक अदूरदर्शिता ने कश्मीर रूपी नासूर को पनपने का ऐसा मौका दे दिया कि वह न जाने कब तक भारत को सालता रहेगा।


      १५ अगस्त १९४७ को जब अंग्रेजों ने भारत को आजाद किया तो कुटिलता की नीति प्रदर्शित करते हुए सारी रियासतों को स्वतन्त्र कर दिया ताकि अव्यवस्था फैल जाये और भारत सरकार मजबूर होकर प्रार्थना करके अंग्रेज सरकार को शासन संभालने के लिए यहां रखे। किन्तु लोहपुरुष सरदार पटेल ने, जो उस समय भारत के उपप्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री थे, उस अव्यवस्था को उत्पन्न ही नहीं होने दिया। सभी ६०० रियासतों को प्रेम से समझाकर भारत में एक संघ के रूप में मिलने पर राजी कर लिया। तीन राज्य भारत में मिलने के लिए तैयार नहीं हुए - हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर। सरदार पटेल ने इन पर कठोरता करते हुए सैनिक कार्यवाही की और इनको भारत का अविभाज्य अंग बना दिया। वर्तमान पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अंग बन जाता यदि नेहरू पटेल के कार्य में दखल न देते।


      पटेल ने महान् राजनीतिक त्याग कर देश के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया। स्वतन्त्र भारत के प्रधानमन्त्री का चयन करने की प्रक्रिया यह थी कि जिसके पक्ष में अधिक प्रान्तों की कांग्रेस कार्यसमितियां प्रस्ताव करके भेजेंगी उसी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जायेगा। बहुमत सरदार पटेल के पक्ष में आया। केन्द्रीय कांग्रेस कार्यसमिति में महात्मा गांधी जवाहर लाल नेहरू के पक्ष में नियमविरुद्ध तरीके से अड़ गयेऐसी स्थिति में सरदार पटेल ही ऐसे उदारपुरुष निकले जिन्होंने उदारता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए स्वयं अपना नाम वापस ले लिया | श्री पटेल की उदारता का ही परिणाम था कि श्री नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने। भारत की आम जनता का मानना है कि पटेल का यह त्याग भारत के लिए हितकर सिद्ध नहीं हुआ | 


      इस वीर पुरुष का जन्म गुजरात प्रान्त में ३१ अक्टूवर १८७५ को हुआ। आपके पिताश्री का नाम झेबर भाई पटेल था। आपके बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल थे। आपका परिवार कृषि कार्य करता था।


      सामाजिक क्षेत्र में आने के बाद आपने स्वाधीनता आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया तथा साथ ही समाजहितैषी कार्य भी किये। आपको गुजरात कांग्रेस की कार्यकारिणी का मन्त्री चुना गया। आपने इस समिति को पूरी निष्ठा से चलाया। उस समय गुजरात प्रान्त में निम्न श्रेणी के राज्य कर्मचारियों से बेगार ली जाती थी। आपने उसके विरुद्ध आवाज उठायी। कमिश्नर ने आपकी बात पर ध्यान नहीं दिया। फिर आपने सरकार को चेतावनी दी कि "यदि सरकार ने सात दिन के अन्दर बेगार प्रथा बंद नहीं की तो मैं इसके विरुद्ध सत्याग्रह करूंगा।" आखिर सरकार को झुकना पड़ा और आपके सद्प्रयत्नों से यह निन्दनीय प्रथा बंद हो गयीइसके बाद आपने गुजरात में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की जिससे गुजरात में शिक्षा की उन्नति को बल मिला | 


      आपने बारदौली में जो सत्याग्रह किया वह बहुत प्रसिद्ध हुआआपने सत्याग्रह के माध्यम से लगान वसूली बंद करायी। सरकार ने आपके भाषणों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। आपने सरकार के प्रतिवन्ध को तोडा जिसके कारण आपको चार मास का कारावास काटना पडा। जेल से छूटने के बाद आपने विशाल जुलूस के साथ लोकमान्य तिलक की बरसी मनायी। पुलिस नहीं चाहती थी कि जुलूस निकले किन्तु आप अपने फैसले पर अडिग रहे। आपको पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।


      आपके सामाजिक एवं स्वाधीनता विषयक कार्यक्रमों से जनता तथा कांग्रेस में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ती गयी। कराची में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो उसमें आपको अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। सरदार पटेल कभी अनुचित दबाव के आगे नहीं झुके। मुस्लिम लीग अथवा जिन्ना जब कभी भी अनुचित धमकी देते तो सरदार पटेल उसका दृढ़ता से उत्तर देते थे।


      भारत के स्वतन्त्र होने के बाद आप दिन-रात देश की सेवा एवं उन्नति के कार्यों में लगे रहते। कार्य की अधिकता के कारण आपको हृदय-रोग हो गया। १५ अक्तूबर १९५० को भारत का यह लोहपुरुष स्वर्ग सिधार गया। आज भी भारत की जनता उन्हें श्रद्धा और आदरपूर्वक स्मरण करती है। 


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