भाभी-देवर व्यवहार


भाभी-देवर व्यवहार


         राम सीता-वियोग में हतप्रभ हो रहे हैं। सुग्रीव उन्हें आश्वस्त करते हैं। कुछ वस्त्र और आभूषण श्री राम की ओर बढ़ाकर कहते हैं- महाराज, पहिचानिये तो, कि क्या ये वस्त्राभूषण माता सीता के ही हैं ? राम उनमें से कुछ आभूषण लक्ष्मण की ओर बढ़ाकर कहते हैं-लक्ष्मण, तुम भी पहिचान करो। इस अवसर पर लक्ष्मण जो उत्तर देते हैं वह विश्व के मानव इतिहास की अमूल्य निधि हैवे कहते हैं-


नाहं जानामि केयूरे, नाह जानामि कुण्डले।


नूपुरावेव जानामि, नित्यं पादाभिवन्दनात्॥


        “भैया, मैं सीता के भुजबन्द की पहिचान नहीं कर सकता और न कुण्डलों कीक्योंकि माता सीता को भर आँख मैंने कभी देखा नहीं। हाँ, माता सीता के बिछुओं की पहिचान मैं अवश्य कर सकता हूँ, क्योंकि प्रतिदिन उनके पवित्र चरणों में अभिवादन (चरण छूकर नमस्ते निवेदन) किया करता था।


        वर्ष के उस वनवास काल में न जाने कितने ऐसे अवसर रहे होंगे जब लक्ष्मण और सीता सर्वथा एकान्त में रहे होंगेवह युवा लक्ष्मण जिसकी पत्नी उसके साथ नहीं थी। इस प्रसंग से जहाँ श्री लक्ष्मण का उत्कृष्ट संयम और सदाचार परिलक्षित होता है, वहाँ भाभी-देवर व्यवहार ., पवित्र झाँकी भी सामने आती है। मनु के शब्दों में बड़ा भाई पिता के समान है तो भाभी माता तुल्य हुईभाभी पर शासन जताना और उसे आधी स्त्री तक कहने का दुस्साहस करने वाले नराधम वैदिक स्वर्ग की इस पवित्र झाँकी से शिक्षा लेंगे, ऐसी आशा है।


        पवित्र वेदों में नारी की विशेषताओं में उसकी एक विशेषता है-'देवृकामः' वह देवर की शुभ कामना करती है, ठीक वैसे जैसे अपने पुत्र की। ऐसी दशा में स्वाभाविक है कि देवरानी (धौरानी) और जेठानी के सम्बन्ध भी मधुर हों। जेठानी- द्यौरानी को अपनी पुत्री या पुत्र वधू के रुप में प्यार दे और द्यौरानी अपनी जेठानी को माता या सास के रुप में आदर प्रदान करे।


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