बेटी की विदाई के समय ( गीत )


बेटी की विदाई के समय ( गीत )


(स्वामी सोमानन्द जी-कविरत्न पं० शीतलचन्द्र जी “शीतल')


कुल की परम्परा मर्याद, निभाये जाना बेटी।


अब सास श्वसुर घर जाओ, मत रोओ और रुलाओ।


अपने बचपन का संसार, भुलाये जाना बेटी।।  कुल की०॥१


सब काम समय पर करना, चीजें जहाँ की तहाँ धरना।


सबको उत्तम भोजन परसि, जिमाये जाना बेटी।।    कुल की०॥२


जो दें प्रभु सम्पत्ति भारी, तो भूल न जाना प्यारी।


अपने देश धर्म हित दान, दिलाये जाना बेटी।।    कुल की॥३


घर में आजाय गरीबी, तो धर्म न तजना बीबी।


टोटे में साहस से काम चलाये जाना बेटी।।      कुल की०॥४


मत फैशन में फंस जाना, मत फूहड़पन दरसाना।


उत्तम गृहणी का शृंगार सजाये जाना बेटी ।।     कुल की॥५


ये. शिक्षासार बताया, सुख होगा अगर निभाया।


सबको कवि 'शीतल' के गीत सुनाये जाना बेटी। ।    कुल की॥६


 


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