बलिवैश्र्वदेव यज्ञ


बलिवैश्र्वदेव यज्ञ 


      यहाँ आप भारत की अमर विभूति गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) के बाल जीवन से सम्बन्धित उस प्रसिद्ध घटना की झाँकी देख रहे हैं, जब उन्होंने अपने चचेरे भाई से एक पक्षी की प्राण रक्षा की थीऔर उनके पिता शुद्धोधन ने अपने भतीजे उदयन के पक्ष को अस्वीकार करते हुये, मारने वाले से बचाने वाले का अधिकार बड़ा है, इस आधार पर सिद्धार्थ के पक्ष को न्यायोचित ठहराया थाप्राणिमात्र के प्रति यह करुणा मानवता का मूल है।


      इसी सम्बन्ध में आप अपने मानस चक्षुओं के समक्ष लाइये-भारत माता के एक महान् सपूत महाराजा शिवि को। वे अपने शरणागत कबूतर की प्राण रक्षा के लिये उसके बजन के बराबर माँस अपने शरीर में से काटकर बाज को दे रहे हैं और इस प्रकार प्राण रक्षा के वैदिक कर्तव्य का पालन कर रहे हैं।


      महाराज शिवि ! आप धन्य हो गये, इतना ही तो नहीं आप इस भारत-भू को धन्य कर गये। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी 'भारत-भारती' में कैसा भावपूर्ण चित्रण किया है-


आमिष जिन्होंने दे दिया जिन श्येन भक्षण के लिए।


जो बिक गये चाण्डाल के घर सत्य रक्षण के लिए।


दे दीं जिन्होंने अस्थियाँ परमार्थ हित जानी जहाँ,


शिवि, हरिशचन्द्र, दधीचि से होते रहे दानी कहाँ?


      इस प्रकार की भूत दया ही भूत यज्ञ या बलिवैश्वदेव यज्ञ हैमनुष्य की आत्मीयता और प्रेम भावना केवल मनुष्य तक ही सीमित न होकर वह जीव मात्र या प्राणिमात्र की सेवा और रक्षा तक फैली हो, यही इस यज्ञ का मूलोद्देश्य है। वैदिक गृहस्थ का यह नित्य कर्त्तव्य है।


      बलिवैश्वदेव यज्ञ (भूत यज्ञ)- में (पक्व और क्षार रहित अन्न से) प्रज्वलित पाकाग्नि में हवन करने का प्रयोजन यह है कि पाकशालास्थ वायु का शुद्ध होना और जो अज्ञात अदृष्ट जीवों की हत्या होती है, उसका प्रत्युपकार कर देना। तथा 'सब जीव हमारे मित्र और हम सब जीवों के मित्र रहें ऐसा जानकर हम परस्पर सदा उपकार करते रहें' ऐसी भावना की वृद्धि इसका फल है।


      प्रतिदिन कुत्ता (गो) आदि उपकारी प्राणी, पतितों तथाचाण्डालों (अर्थात् कंगालों) कुष्टी आदि पाप रोगियों (अर्थात् दुष्टव्याधि-ग्रस्तों) और काक (कबूतर) आदि पक्षियों और चीटी आदि कृमियों (कीटादि) के लिये भी अपने अन्न भाग में से अलग-अलग बाँट कर देने से सदा उनकी प्रसन्नता होती है। अर्थात् सब प्राणियों को मनुष्यों से सुख होना चाहिए। इससे प्राणिमात्र में समदृष्टि सर्व भूतदया, अहिंसा तथा परोपकार भावना की वृद्धि होती है| 


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