बारूद का ढेर
बारूद का ढेर
बारूद के ढेर पर बैठी है। संसार के सब देशों ने इतने संहारक हथियार जूटा लिए हैं कि किसी भी समय सारा संसार नष्ट हो सकता है। आँकड़ों की दृष्टि से संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए लगभग साढ़े चार किलो विस्फोटक पदार्थ विद्यमान हैं। जिस विज्ञान के ऊपर हम गर्व करते हैं उसकी चरम उपलब्धि प्रात्म-विनाश के इतने साधन जुटाना मात्र है। एक चिंगारी विज्ञान और विज्ञानवेत्ताओं को एक साथ नष्ट कर देगी।
भस्मासुर की कहानी पौराणिक कल्पना मात्र भले ही रही हो; पर आज वह कल्पना साकार हो गई है। उसने वर के रूप में विनाश का साधन मांगा। और अन्त में, वह स्वयं विनष्ट हो गया। जब कोई व्यक्ति विवेक को तिलांजलि दे दे तो उसकी ऐसी ही स्थिति हो जाती है। वर्तमान सभ्यता का विकास भी विवेक की छाया में नहीं हो रहा है। अतः कभी भी उसका विनाश संभव है।
संसार में प्रत्येक देश में घातक हथियारों के संग्रह पर रोक लगाने की मांग हो रही है। पर ऐसे लोगों की भावनाओं को समझने के लिएकोई तैयार नहीं है। प्रत्येक राजनेता इस खतरे को समझता है पर बचाव के लिए मौखिक रूप से चिन्ता व्यक्त करने के अतिरिक्त कुछ भी करने को तैयार नहीं है। कितने ही प्रस्ताव पारित किए गए; पर परस्पर विश्वास की कमी के कारण उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ।
ऐसी स्थिति में मानव की रक्षा कौन करे ? मानवता को कौन बचाए ? निश्चय हो इस विषय में निर्णय समझदार और संवेदनशील व्यक्ति ही ले सकते हैं। उनकी कमी भी नहीं है; पर उनमें दृढ़ संकल्पशक्ति नहीं जाग पा रही है। आग बुझाने के लिए तो पानी चाहिए। हिंसा और अातंक का सामना तो विवेक और शान्तिपूर्वक ही किया जा सकता है । युद्ध का आतंक पैदा करनेवाले तो संसार में एक प्रतिशत व्यक्ति भी नहीं हैं। आदमी ने बनैले घोड़ों, हाथियों, शेरों तक को काबू में किया है । हिंसक आदमियों को काबू में क्यों नहीं किया जा सकता ? अावश्यकता इस बात की है कि सब लोग इस खतरे को समझे और इसको दूर करने के लिए संकल्पबद्ध हों यह काम बड़ा तो नहीं है; पर दृढ़ता के बिना इस विषय में कुछ भी नहीं किया जा सकताआपको परेशान देखकर राजनेता तो प्रसन्न होते हैं । उनसे कुछ भी अाशा मत करो । उनके भरोसे कुछ भी मत छोड़ो। यह बारूद उन्होंने ही एकत्र की है । वे आग ही लगा सकते हैं।
-पंचोली