अतिथि यज्ञ की विधि


अतिथि यज्ञ की विधि


      इसकी विधि यह है। जब अकस्मात् ऐसा कोई विद्वान् अतिथि गृहस्थों के घर प्राप्त हो, तब उसकी गृहस्थ-


      १- अत्यन्त प्रेम से उठकर नमस्ते निवेदन करे


      २- प्रथम पाद्य, अर्घ और आचमनीय तीन प्रकार का जल देकर उचित उत्तम आसन पर बैठावे


      ३- स्वस्थ चित्त होने पर उससे पूछकर, खानपान आदि उत्तमोत्तम पदार्थों से सेवाशुश्रूषा कर उसको प्रसन्न करें।


      ४- पश्चात् (प्रार्थना करे कि) उत्तम पुरुष !......... हमको ने सत्य उपदेश से तृप्त कीजिए, जिससे हमारे इष्टमित्र सब आपके उपदेश से विज्ञान युक्त होवें और सदा प्रसन्न होके आपको भी सत्य प्रेम सेवा से सन्तुष्ट रखें। इस प्रकार सत्संग कर उससे ज्ञान विज्ञान आदि जिन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होवे, ऐसे-ऐसे उपदेशों का श्रवण करे और अपना चाल-चलन भी उसके सदुपदेशानुसार रखे| 


    ५- (उससे कहे कि) हे विद्वान् ! जिस प्रकार से आपको प्रसन्नता हो, वैसा ही हम लोग काम करें (गे)। जो पदार्थ आपको प्रिय हो, उसकी आज्ञा कीजिए, जिस प्रकार से आपकी कामना पूर्ण हो, वैसी आपकी सेवा करें (गे) जिससे आप और हम लोग परस्पर प्रीति पूर्वक सेवा और संत्सग पूर्वक विद्या वृद्धि से सदा आनन्द में रहें।(ऋ0 भा0 भू0)


      परन्तु मिथ्या उपदेशक, स्वार्थी पाखण्डी.......वेदनिन्दक विकर्मस्थ, विडालवृत्ति, शठ, कुतर्की, गपोड़ी, बगुला भगत...... वैरागी, खाकी, नागेसाधु......दुराग्रही वेद विरोधी मनुष्य का वाणी मात्र से भी सत्कार न करना चाहिए।


      इस प्रकार पंच महायज्ञों को स्त्री-पुरुष प्रतिदिन करते रहें | 


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