अपने ये हाथ दोनों जगन्नाथ है


अपने ये हाथ दोनों जगन्नाथ है


धूमकेतु ने फिर आज अंगड़ाई ली, एक ज्वालामुखी फूटने वाला है


मेरे दिग्पाल प्रहरी रहो सावधान, वही भूचाल फिर लौटने वाला है


कब से तिब्बत के सीने में संगीन है, रक्त-रंजित वियतनाम सैगौन है।


मेरे हिमगिरी को जिसने अपावन किया, क्या नहीं जानते तुम कि वह कौन है?


मौन हो मत दो वरदान शैतान को, भस्मासुर बन जो नित नाचने वाला है।


                                                                       मेरे दिग्पाल प्रहरी रहो सावधान ।। १।।


पारे से चंचल हैं जनमत जगत्मत, है गजदंत-युग तुम रहो सावधान।


पंचशीलों की होली यहाँ जल गई, देखते रह गये ये जमीं आसमान।


श्वेत और श्याम गज की कतारें यहाँ, इनमें कोई नहीं जूझने वाला है।


                                                                       मेरे दिग्पाल प्रहरी रहो सावधान ।। २।।


दिल्ली की किल्ली बनी दिल्लगी, शकुनी के अस्थि-पासे फड़कते फिरे।


राह भी एक मंजिल भी जब एक है, फिर पथिक क्यों बहकते-भटकते फिरे।


तुम जगाओ न उस क्रूर कुरुक्षेत्र को, तन पितामह का जिसने बिंधा डाला है।


                                                                      मेरे दिग्पाल प्रहरी रहो सावधान।। ३ ।।


किसने मेरे असम को विषम कर दिया, खूनी बारुद काश्मीर में भर दिया।


चूम फांसी जो बलिदानी दूल्हा बना, उस भगतसिंह के भक्तों को भरमा दिया,।


उन दीपों की बाती, बुझा दीजिये, घर जला जो कहें देखो उजियाला है।


                                                                       मेरे दिग्पाल प्रहरी रहो सावधान ।। ४।।


यदि हम साथ हैं तो जगत् साथ है, हमको ललकारे फिर किसकी औकात है।


कर्म को ऐसा वरदान प्रभु ने दिया, अपने ये हाथ दोनों जगन्नाथ हैं।


हो तुम्ही भीम अर्जुन सुदर्शन तुम्हीं, मन के मंदिर में गीता का रखवाला है।


                                                                         मेरे दिग्पाल प्रहरी रहो सावधान।।५।। 


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