अपने-आपको जानें

अपने-आपको जानें


अयं कविरकविषु प्रचेता मर्तेष्वग्निरमृतो नि धायि।


स मा नो अत्र जुहुरः सहस्वः सदा त्वे सुमनसः स्याम॥


विनय-हम क्या हैं? यह हम नहीं जानते। हम जिसे 'हम' समझते हैं वह तो बहुत-सी विनश्वर वस्तुओं का ढेर हैफिर भी जो हममें ज्ञान, चैतन्य, शक्ति और आनन्द दिखाई देता है वह जिस एक वस्तु के कारण है वही हमारे अन्दर एकमात्र अविनश्वर तत्त्व है। यह हमारा अग्नि है, आत्मा है और वही असली हम हैंइन हमारे देह-इन्द्रिय आदि भौतिक जड़ वस्तुओं में वही एकमात्र (प्रचेता) है, चेतन है। इन अकवियों में वह कवि है, इन अक्रान्तदर्शियों में वह क्रान्तदर्शी है, इन बोल न सकनेवालों में बोलने की शक्ति देनेवाला है, इन असुन्दर, अकाव्यमय वस्तुओं में वह सुन्दर काव्यमय है। वही इन विनाशशील, मरनेवाले मर्त्य अनग्नियों में एक अविनश्वर अमृत अग्नि है। वही असली हम हैं, आत्मा हैं।


ओह! इसकी उपेक्षा कर जो अबतक हम दिन-रात दूसरी जड़, क्षणभङ्गर वस्तुओं की सेवा-शुश्रूषा करने में लगे रहे हैं यह हमने कितना अनर्थ किया है! हे आत्मन् ! आजतुझे पहचानकर हम देखते हैं कि इन्द्रिय-मन-प्राण आदि में जो बल, तेज, सामर्थ्य दिखा देता है वह इनमें नहीं है, वह सब तो तुझमें है, इसलिए हे अग्ने! सहस्वः ! हे बल, तर शक्ति के भण्डार! तू इस संसार में हमारा कभी विनाश मत करहमने अबतक पर तुझ अपनी अग्नि को भूलकर बड़ा आत्मघात किया है, पर अब हम कभी ऐसा आत न करेंगे। हमें अब एकमात्र तेरी ही प्रसन्नता चाहिएयह सब जग बेशक रूठ ॥ हम अब तुझे कभी रूठने न देंगे। हे अन्दर बैठे अन्तरात्मन् ! जबतक हमारे प्रात 3 हो, चाहे फिर दुनियावाले हमारी निन्दा करें, धिक्कारें, हमें कुछ परवाह नहीं इस दुनिया को छोड़कर हम केवल तुझे प्रसन्न रखेंगे। चूँकि तू ही सब-कुछ है,निश्चय से हमारा सब -कुछ है | 


शब्दार्थ-अयम्=यह         प्रचेता: =  अग्नि: चेतन अग्नि       अकविषु कवि  = इन  अववियो में कवि होकर        अमर्येषु अमृतः =  इन मरनेवालों में अमत होकर        सहस्वः= हे बल-तेज-शक्तिवाले      सः =  वह तू           न: =  हमें      अत्र = इस  संसार  में        जुहुरः  = विनष्ट कर, किन्तु हम       सदा = सदा त्वे-तुझमें         स्याम =  बने रहें


 


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