अन्नप्राशन संस्कार


अन्नप्राशन संस्कार


       मानव जीवन के सोलह संस्कारों में सातवें संस्कार का नाम नप्राशन संस्कार है। संस्कार मानव जीवन के नवनिर्माण की एक भीर योजना होने के कारण बाल्यकाल में ही बालक को प्रभावित ने लगते हैंहम जानते हैं कि बाल्यकाल में अर्जित किया गया जीवन काम आता हैबडी आयु में आदतें बदलना थोडा कठिन होता है। इसीलिए ही संस्कारों के माध्यम से बाल्य काल में ही बालक को संस्कारित करने की परम्परा वैदिक संस्कृति की देन है। मानव जीवन में जिन सोलह संस्कारों को अवश्यंभावी माना गया है, उनमें से दस संस्कार तो केवल दस वर्षीय आयु में ही सम्पन्न हो जाते हैं। शेष पूरे जीवन के लिए केवल छ: संस्कार ही बचते हैं। इस से स्पष्ट है कि छोटी आयु में ही दिये गए संस्कारों का मनुष्य के समग्र जीवन में उपयोग होता है |


      इस संस्कार के नाम से ही सपष्ट है कि इसका सम्बन्ध अन्न से है। अब तक बालक केवल दूध आदि पेय पदार्थों पर ही निर्भर था, अब इसने इतनी शक्ति संचित कर ली है कि वह अन्न को पचा सकता है। अतः इस संस्कार से उसे अन्न ग्रहण की एक प्रकार से अनुमति दी जाती है। अन्नप्राशन का सम्बन्ध मां के स्वास्थ्य से भी है। मां बच्चे को दूध देती है तो उसके शरीर से कैल्शियम के तत्त्व दूध के साथ निक कर बच्चे को मिलने लगते हैं, इससे मां में दुर्बलता आने लगती। इस दुर्बलता को रोका जा सके , इसी दृष्टि से अन्न प्राशन का समर निश्चित किया गया हैजब बच्चे के दांत आने लगे तो उसे तनिक कठोर भोजन आरम्भ किया जावे तथा जब पर्याप्त दांत आ जावें तबलक बन्द कर बाह्य भोजन आरम्भ करने के लिए अन्नप्राशन संस्कार किया जावे।


      दांत निकलने के बाद भी जो बच्चे केवल दूध पर ही आश्रित रह जाते हैं उनका शरीर कडा नहीं हो पाता। सभी माता पिता किसी न किसी समय बच्चे का दूध छुडवाते ही हैं किन्तु हमारी सस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है, जिसने इस को सोलह संस्कारों में स्थान देते हुए एक निश्चित समय सीमा में बांध दिया है। 


           बालक का दूध छुडाने का काल तथा विधि


       मानव ने कब क्या करना है, इसके लिए प्रकृति ने कुछ नियम बना रखे हैं। प्रकृति के इन्हीं नियमों को क्रियान्वित करने के लिए वैदिक संस्कृति ने सोलह संस्कारों की परम्परा स्थापित की है। यह परम्परा ही बताती है कि जब बालक ने दांत निकाल लिये तो इसका अन्नप्राशन संस्कार कर उसे अन्न लेने की अनुमति दी जावे। अत: यह वह समय है, जब मां का दूध उसे देना बन्द करना होता है तथा ऐसी वस्तुएं देनी होती हैं जिस के लिए दांत प्रयोग हों। यह समय जन्म से छटा महीना है जब दांत आने लगते हैं। अतः यही समय है जब अन्नप्राशन संस्कार किया जाना चाहिये। यदि दूध के अभाव में बच्चे को समय पर अन्न देवें तो अन्न उसे पच नहीं पाता और यदि इस समय के पश्चात श्री बच्चे को दूध देते रहे तो वह शक्तिहीन सा हो जाता है। इसीलिए वैदिक शास्त्रज्ञों ने इसके लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित की है। ताकि न तो माता के शरीर की हानि हो तथा न ही बच्चे की। 


      - छः माह के शिशु होते ही माता को अपना ढूध छुडाने की तैयारी करनी होती है। यह अवस्था सर्दी के आरम्भ होने के आरम्भिक दिनों में उत्तम रहती हैइस समय बच्चे को दही, मधु व घी का मिश्रण चटाना आरम्भ कर देना चाहिये। इससे आयु भी लम्बी होती है। इसी कारण अन्नप्राशन के समय दूध दही लस्सी व शहद के प्रयोग का आदेश वैदिक संस्कृति देती है। माता को चाहिये कि धीरे-धीरे दूध छडावे । पहले जितनी बार दूध देती थी, उससे कम बार देने लगे । अब फलों का रस व गाय अथवा बकरी का दूध भी देने लगे। यह ऊबली हुई बोतल से भी दिया जा सकता है। इससे माता को भी परेशानी नहीं होगीपहले पहल जब गाय का दूध देने लगे तो इसमें आधा उबला खानी मिला लेना चाहिये। एक सप्ताह में एक बार, दूसरे सप्ताह में दिन में दो बार, तीसरे सप्ताह में तीन बार। इस प्रकार धीरेधीरे मां के दूध के क्रम को कम करते जावें तथा गाय के दूध के क्रम को बढ़ाते हुए साथ साथ फलों का रस व दही , सब्जी आदि भी देते रहें। इस प्रकार तीन चार महीने में दूध के स्थान पर पूरी तरह से बच्चे को भोजन व गाय के दूध पर ले आवें। यही कारण है कि अन्नप्राशन संस्कार के साथ ही धीरे धीरे उसे मां का दूध कम करते हुए बाहरी पदार्थों पर निर्भर क्रवाया जाता है, ताकि वह अस्वस्थ भी न हो व अन्ज पर भी आ जावे | 


      दांत निकालते समय बच्चे के शरीर को भारी कष्ट हो रहा राता है,अतः इस समय चेचक केटीके लगवाने से भी बचना होता है क्योंकि यह टीका भी कष्ट कारी होने से दोनों का कष्ट एक साथ सह पाने की क्षमता बच्चे में नहीं होती। अतः यह टीका या तो तीसरेमहीने के पहले या फिर नवें महीने के बाद लगाया जावे । इस प्रकार अन्नप्राशन सस्कार का भी अन्य संस्कारों की भाँति मानव जीवन में विशेष उपयोग है। अन्य संस्कारों की भांति इसे भी अवश्य ही करना चाहिये | 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।