अमैथुनी सृष्टि सब प्रकार की होती है


               अमैथुनी सृष्टि में केवल मनुष्य ही नहीं उत्पन्न होते, किन्तु पशु, पक्षी इत्यादि सभी उत्पन्न होते हैं। ये भिन्न-भिन्न योनियाँ क्यों उत्पन्न होती हैं? इस प्रश्न का उत्तर वैशेषिककार ने उनकी पिछली सृष्टि में किए हुए कर्मों की भिन्नता दिया है। महाप्रलय होने पर वैशेषिककार के मत में किसी दिशा अथवा स्थान में कोई प्राणी किसी योनि में भी बाकी नहीं रहता। इसलिए अमैथुनी सृष्टि का होना अनिवार्य है। फिर उसने एक जगह लिखा है कि प्राचीन आर्य प्रथानुसार, अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न होने वाले व्यक्तियों को, पिता के नाम से नहीं पुकारते, जैसे भरद्वाज का पुत्र भारद्वाज। बल्कि उत्पन्न होने वाले व्यक्ति के मल नाम ही लिये जाते हैं। जैसे अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा तथा ब्रह्मा आदि। इसलिए कि इनके कोई माता-पिता नहीं थे। उसने अपने मत की पुष्टि में अमैथुनी सृष्टि के होने के बाद को आवश्यक बतलाते हुए उसके वेद से प्रमाणित होने का भी उल्लेख किया है। वेद में एक जगह अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न मनुष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा गया है—'हे समस्त प्राणियो! तुम न शिशु हो न कुमार किन्तु महान् (युवा) हो।



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