अध्यापकों के लिए

अध्यापकों के लिए


            5 सितंबर को अध्यापक दिवस मनाया गया। ऐसे दिवस कर्तव्य बोध का विशेष चिन्तन करने का सुअवसर देते हैं। समाज को सुसन्तति सौंपने में माता-पिता और अध्यापक का ही योगदान रहता है। जहाँ विद्वान्, धार्मिक, पुरुषार्थी अध्यापक होते हैं, वहाँ विद्या, धर्म और उत्तमाचार की वृद्धि होकर प्रतिदिन आनन्द ही बढ़ता रहता हैजहाँ मूर्ख, अधार्मिक, आलसी अध्यापक होते हैं, वहाँ अविद्याअधर्म, असभ्यता, दुःख बढ़ता है, ऋषियों व नीतिकारों का यही मत है। केवल अध्यापक की पात्र परीक्षा पास करने से या पद पर प्रतिष्ठित होने से ही कोई अध्यापक नहीं बन जाता, अध्यापक बनता है, कर्तव्य निर्वहन से।


            अध्यापक का कर्तव्य बालक को विभिन्न प्रकार से पाठ्य-विषयों को पूरे पुरुषार्थ से पढ़ाने के साथ-साथ अपने आचरण व उपदेश से उसे धार्मिक बनाना है। जब भी मैं अंग्रेजी में 'An Ideal Teacher का Paragraph लिखता या लिखाता था तो मुझे उसमें सबसे अच्छी यह पंक्ति लगती थी-'He takespain to teach his students.' यह वाक्य मेरे हृदय को छू जाता था। हमने वास्तव में वह समय देखा जब अध्यापक कक्षा और विद्यालय के समय बाद भी बालकों को मनोयोग से पढ़ाते थे, बिना कोई अतिरिक्त शुल्क लिए। अब अध्यापकों को विद्यार्थियों की वह चिंता कहाँ?


              विद्यार्थियों के हितार्थ चिंतन न करने वाला अध्यापक नए-नए ढंग से विद्यार्थियों को विषय सम्बन्धी ज्ञान देने में असफल रहता है तथा पढने-पढ़ाने में रस नहीं रहता। अपने अध्यापन के आरम्भिक दिनों में करनाल-हांसी रोड पर स्थित 'विद्योत्मा' विद्यालय में मैं अंग्रेजी पढ़ाता थापहले स्वयं तैयारी करके, अपने वाक्य बनाकर, पुस्तकों में दिए अभ्यास की भी मदद लेकर विद्यार्थियों को English Grammar पढाता था। विभिन्न विभागों (TensesModals, Clauses, Conjunctions, InfinitivesInfinitivesपढ़ाने-समझाने के लिए नए-नए ढंग सामने आने लगे। वहीं से पढ़ा हुआ पाढ़ा (करनाल) गांव का एक विद्यार्थी आनन्द पिछले दिनों मिला। उसने बताया कि वह I.ESकी परीक्षा पास कर सरकारी सेवा में है। उसने बड़े आदर से कहा कि गुरुजी जो Grammar आपने पढ़ाई वह फिर नहीं पढ़ने को मिली, उसे हम अब भी याद करते हैं । ऐसे प्रसंगों से जो आत्मिक सुख मिलता है, उसे एक आदर्श अध्यापक ही अनुभव कर सकता है। उस समय मैं आर्यसमाज के साहित्य का भी खूब अध्ययन करके विद्यार्थियों को उसके रंग में रंगता था। इसी प्रयास में वहीं पास में ही रहने वाले आर्यसमाज इतिहास शिरोमणि श्रीयुत् राजेन्द्र 'जिज्ञासु' के बड़े भाई स्वनामधन्य श्री यशपाल जी मुझसे मिले व बहुत स्नेह, प्रोत्साहन दिया।


             गुरुकुल सिंहपुरा (रोहतक) में सेवा देते हुए 8वीं से 12वीं तक के कुछ ऐसे विद्यार्थियों को पढ़ाने में सफल रहाजिन्हें अंग्रेजी के शब्द स्वयं बोलकर बुलवाने पड़ते थे। इनमें से कुछ बालक ऐसे निपुण हो जाते थे जो पूरा पाठ्यक्रम कण्ठस्थ कर लेते थे। जब ये बालक पूज्य आचार्य बलदेव जी का आशीर्वाद लेने सभा में आते तो श्री सत्यवान जी सह-कार्यालयाधीक्षक व श्री शेरसिंह कार्यालयाधीक्षक को पाठ्यक्रम में कहीं से भी कुछ पूछने पर सुना देते थे। एक अनाथ बालक फारुल मल्होत्रा आज ऐसा प्रयास करके विदेश में धन व यश कमा रहा है। मुझे कुछ साथियों ने बताया कि 'अध्यापक दिवस' पर उसने विदेश से 'Face-book' पर आपके प्रति कृतज्ञता भेजी है। एक मुस्लिम परिवार का लड़का नवाब जिससे कुश्ती में पांचवीं कक्षा से ही अभ्यास करवाया, वह आज भारतीय खेल प्राधिकरण, चंडीगढ़ में प्रतिष्ठित पहलवान बन चुकाहै। जब भी मिलता है उसकी मूक कृतज्ञता से ही बड़ा सन्तोष मिलता है।


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