अभिवादन का प्रकार


अभिवादन का प्रकार 


       १- माता, पिता, आचार्य, अतिथि-महात्मा आदि को उठकर दायें हाथ से दाहिना तथा बांये हाथ से बांया चरण स्पर्श करके-दादाजी नमस्ते, दादी जी नमस्ते, माता जी नमस्ते, पिताजी नमस्ते, ताऊजी नमस्ते, चाचाजी नमस्ते, बुआजी नमस्ते, भैयाजी नमस्ते, भाभीजी नमस्ते. स्वामीजी या महात्मा जी नमस्ते आदि कहें।


        २- बड़े प्रत्युत्तर में छोटों के सिर पर हाथ रखें 'नमस्ते बेटे-प्रसन्न रहो।' या 'नमस्ते-प्रसन्न रहो' ऐसा कहें। संस्कृत में कहना हो तो 'आयुष्मान् भव सौम्य' ऐसा कहें|


        ३- नमस्ते निवेदन करते हुए छोटों के चेहरों पर विनय शीलता तथा बड़ों के चेहरों पर प्रसन्नता स्पष्ट झलकनी ही चाहिए|


        ४- बराबर वालों से दोनों हाथ जोड़कर हाथों को हृदय से लगाकर तथा सिर झुका कर नमस्ते करें। यह अभिवादन का सर्व सामान्य प्रकार है|


        ५- पत्नी अपने पति के चरणों का स्पर्श करके श्रद्धा सहित 'नमस्ते जी' ऐसा कहे। पति प्रत्युत्तर में प्रेम सहित पूर्वोक्त क्रम से हाथ जोड़कर 'नमस्ते जी' ऐसा कहे। सांयकाल पति जब घर लौटे तब भी पत्नी इसी क्रम से नमस्ते करे और पति भी उक्त क्रम से नमस्ते करें |


       ६- किसी समय भी परिवार के किसी सदस्य के बाहर से घर में आने पर यथाक्रम अभिवादन होना चाहिए। अर्थात् छोटे दौड़कर उसे अभिवादन करें और वह बड़ों को करे।


       ७- किसी समय भी परिवार में बाहर के किसी अतिथि या समबन्धी के आने पर यथाक्रम अभिवादन करना चाहिए। बड़े के आने पर उठकर यथाक्रम अभिवादन, आसन देना कुशल प्रश्न पूछना और जल एवं भोजनादि की व्यवस्था का क्रम चलना चाहिए|


      ८- द्वार पर किसी के आवाज देने पर जब घर का कोई बालक द्वार पर जावे तो भी पूर्वोक्त क्रम से अभिवादन करके माधुर्य सिञ्चित वाणी में उत्तर देवे। आगन्तुक को यदि घर के अन्दर लाना हो तो साथ लाकर बैठक में आसन देकर प्रेम एवं श्रद्धापूर्वक बिठा कर कहना चाहिए- 'आप विराजिये मैं , को अभी बुलाता हूँ या वे अभी आते हैं।' 


      ९- परिवार में आगन्तुक सज्जन यदि विद्वान हैं तो आयु में कितना ही छोटा होने पर भी अपना बड़ा मानकर ही यथाक्रम अभिवादन करना चाहिए। इस सम्बन्ध में मानव धर्म शास्त्र की निम्न व्यवस्था है-


ब्राह्म दशवर्ष तु शतवर्ष तु भूमिपम्।


पिता पित्रौ विजानीयाद् ब्राह्मणस्तु तयोः पिता॥


-मनु० अध्याय २।१३५


       अर्थात् दश वर्ष के ब्राह्मण (विद्वान) और सौ वर्ष के क्षत्रिय का पिता पुत्र का सम्बन्ध होना चाहिए। उनमें ब्राह्मण विद्वान पिता है|


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