आर्य नारी के सच्चे आभूषण

आर्य नारी के सच्चे आभूषण


(सीता को अनुसूया का उपदेश)


क्या रक्खा है इन चमकदार, कटियों, पटियों और झूमर में।


यह शीश-फूल सच्चा सिर का, सिर झुके बड़ों के आदर में।।


पतिधर्म श्रवण हो श्रवणों से, यह श्रवण-फूल अति उज्ज्वल हो।


माथे पर तेज की बेंदी हो, आँखों में लाज का कज्जल हो।।


शद्धता नाक की हो बुलाक, दाँतों की चोब सफाई हो।


जम जाय जितेन्द्रियता का रंग यह गालों की अरुणाई हो।।


बाजों का बाज बन्द यही, बाजों में बस तैयारियाँ हों।


अंगुरी के मुंदरी और छल्ले, अनगिनती दस्तकारियाँ हों।।


जिन हाथों के प्यारे जेबर, चक्की, चर्खा, सिल वटना हैं।


उनके आगे क्या चीज भला, हथफूल, छन्न और कँगना हैं।।


जो हाथ दास बनकर घरके, घर को रोटियाँ खिलाते हैं।


पहुँ चियाँ, पछे ली, दस्ताने, उनके आगे शर्माते है ।।


कण्ठी तो यही कण्ठी की है, बस कण्ठ में मिसरी घोली हो।


हो हृदय पै श्रद्धा का जुगनूं, जड़वाँ-हमेल गम्भीरता की।


सत्यता मोतियों की माला, और चम्पाकली धीरता की।।


पतिप्रेम का चन्दरसेनी हार गर्दन पर और जिगर पर हो।


पतिव्रत और ब्रह्मचर्य-व्रत की, निर्मल कौंधनी कमर पर हो।।


पति-आज्ञा में जम जाय पांव, यह लच्छे छड़े हैं पाँवों के।


सन्मार्ग पै चलते रहें पाँव यह बिछुए कड़े हैं पाँवों के।।


लज्जा की तथा शील की जब, साड़ी और चोली शोभित हों।


तब देख-देख उस नारी को, देवियाँ स्वर्ग की लज्जित हों।।


यह हैं नारी जाति के, भूषण और श्रृंगार।


होती है नित प्रकृति भी जिन्हें देख बलिहार॥


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।