आर्य भारतवर्ष के ही मूल निवासी हैं


आर्य भारतवर्ष के ही मूल निवासी हैं


       अब से डेढ सौ वर्ष पूर्व, जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे, अंग्रेज इतिहासकारों ने कहा था कि हम आर्यों (हिन्दुओं) के पूर्वज भारतवर्ष में कहीं बाहर से आकर बसे थे। परन्तु इस बात का उन्होंने कोई भी प्रमाण नहीं दिया था। खोज और अध्ययन से पता लगता है कि अंग्रेजों की यह बात सत्य नहीं हैखुशामदी मनोवृत्ति वाले हिन्दू इतिहासकारों ने भी अंग्रेजों की इस बात को बिना विचारे ही स्वीकार कर लिया तथा इस झूठ को सत्य मानकर इसका प्रचार और प्रसार आरम्भ कर दिया।


      संसार में सबसे पुराने कोई ग्रन्थ हैं तो वे हैं आर्यों के ग्रन्थ-वेदसंसार में सबसे पुराना कोई साहित्य है तो वह है आर्यों का संस्कृत भाषा में साहित्यसंस्कृत के किसी ग्रन्थ में ऐसा नहीं लिखा है कि आर्य भारतवर्ष में कहीं बाहर से आए थे। इस देश का नाम पहले आर्यावर्त्त था ऐसा बहुत से ग्रन्थों में लिखा मिलता है। आर्यावर्त से पहले इस देश का क्या नाम था कहीं भी नहीं लिखा मिलता। अतः निश्चित् है कि आर्यो से पहले इस देश में कोई और न था और न ही इस देश का कोई और नाम था। इसलिए यह बात कि 'आर्य' इस देश में कहीं बाहर से आकर बसे थे' सत्य नहीं है।


       यह तथ्य सभी जानते हैं और स्वीकार करते हैं कि मुसलमान पिछले लगभग एक हजार वर्षों से अरब देशों से चलकर यहां आने लगे हैं। पिछले तीन सौ वर्षों से यूरोप के गोरे अंग्रेज आदि यहां आने लगे थे। लगता है कि अंग्रेज शासकों ने भारतवर्ष के मूल निवासी आर्यों (हिन्दुओं) का मनोबल गिराने के लिए उन्हें अपने (अंग्रेजों) तथा मुसलमानों के समान ही बाहर से आए बताया था ।


      लोकमान्य तिलक भी अंग्रेजों की इस चाल में फंस गए थे। उन्होंने भी अंग्रेजों की इस बात का अनुसरण किया। जब उनसे इस बात का प्रमाण देने के लिए कहा गया तो उन्होंन सहजता से कह दिया कि "हमने मूल वेद नहीं पढ़े, हमने तो साहब लोगों (यूरोप के विद्वानों) का अनुवाद पढ़ा है''


      आर्यों (हिन्दुओं) में फूट डलवाने के लिए अंग्रेजों ने द्रविड़ों को आर्यों से भिन्न बताया थाजबकि वास्तविकता यह है कि द्रविड़ शब्द आर्य ब्राह्मणों के दस कलों में से पांच कुलों में होता है जिसमें आदि गुरु शंकराचार्य जैसे ब्राह्मण पैदा हुए।


      पीछे रूस में एक अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी हुई थी। उसमें भारत सरकार के एक प्रतिनिधि मण्डल ने भी भाग लिया था। उस प्रतिनिधि मण्डल में इतिहासविद भाषा वैज्ञानिक तथा पुरातत्ववेत्ता थे। उन्होंने गोष्ठी में भाग लेते हुए आर्यों (हिन्दुओं) के ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया आदि से आकर भारत में बस जाने की बात का एकमत होकर खण्डन किया था और उनके इस मत को गोष्ठी में उपस्थित सभी देशों के प्रतिनिधियों ने बहुत सराहा था। इस सम्बन्ध में 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के ३१ अक्तूबर १६७७ के अंक में छपा था :-


       There is no conclusive evidence of Aryan migration into India from outside according to Indian Historians, Linguists and Archaeologists who participated in the recent international seminar in Dushambe the Capital of Soviet Republic of Tadjikistan. Dr. N. R. Bannerjee, Director of the National Museum and a member of the Indian delegation said that Indian Scholars 'made out this point at the seminar and the papers presented by them were very much appreciated.......................Ninety delegates from the Soviet Union, West Germany, Iran, Pakistan and India attended.


        ईरान के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया जाता रहा है "आर्यों का एक समूह ईरान की ओर आया और यहीं बस गया। इसलिए अपने नाम पर उन्होंने इस देश का नाम ईरान रखा। हम उन आर्यों की सन्तान हैं।" 


        डेविड फ्रौले (David Frauley) ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है 'दी मिथ ऑफ दी आर्यन इनवेजन ऑफ इण्डिया'। वह लिखता है कि आर्यों के भारतवर्ष में कहीं बाहर से आने की बात तथा यहां के लोगों पर हमले की बात दोनों ही निराधार हैं। उन्नीसवीं सदी के इतिहासकारों ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा है। वह लिखता है कि भारत में आर्यों तथा अन्यों में धर्म और संस्कृति के आधार पर कोई भी भेद नहीं है। आर्य भारतवर्ष के ही मूल निवासी हैं। अंग्रेजों ने भारत में अपने आगमन को जायज सिद्ध करने के लिए ही यह बात घड़ी थी।


        जो लोग कहते हैं कि आर्य भारत में कहीं बाहर से आए थे वे कहते हैं कि आर्य भारत में आज से तीन और साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व के बीच में आए थे। महर्षि दयानन्द सरस्वती का मत है कि आर्य इसी देश के मूल निवासी हैं। उन्होंने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'सत्यार्थ प्रकाश' में महाभारत काल से लेकर मुसलमानों का शासन आरम्भ होने तक यानि कि अब से पांच हजार वर्ष पूर्व से लेकर आठ सौ वर्ष पूर्व तक दिल्ली पर शासन करने वाले सभी आर्य राजाओं के नाम तथा उनके शासन काल दिए हैं। इनमें महाराजा युधिष्ठिर से लेकर महाराजा यशपाल तक एक सौ चौबीस राजे हुए जिन्होंने कुल चार हजार एक सौ सत्तावन वर्ष, नौ महीने, चौदह दिन राज्य कियामहाराजा युधिष्ठिर से पहले के सभी राजाओं के नाम महाभारत में लिखे हैं। इस बात से पूरी तरह प्रमाणित हो जाता है कि आर्य ही सदा से इस भूमि पर रह रहे हैं। वे कहीं बाहर से नहीं आए थे |


      इन सारे तथ्यों के बावजूद हमारे बच्चों को इतिहास में यह गप्प अब तक पढाया जाता है कि आर्य (हिन्दु) भारतवर्ष में कही बाहर से (ईरान आदि देशों से) आकर बसे थे। इस बात का दुष्परिणाम, अन्य बातों के साथ-साथ, एक यह भी हुआ कि आर्य (हिन्दू) विरोधी मुसलमान आदि लोग आर्यों (हिन्दुओं) से दुर्व्यवहार करते हैं तथा उनकी संस्कृति पर प्रहार करते हैं। 'मुसलिम इंडिया' के मार्च १६८५ के अंक में छपा था :-"If Muslims and Christians are foreigners and must go out of India, as India's first foreigners the Aryans are duty bound to go out first. Those who came first, must leave first. Most of India's Muslims and Christians are converts from those sons of the soil. They are either Dalits or Tribals........ They are its original inhabitants and hence its rightful owners.”


       अर्थ-यदि मुसलमान और ईसाई विदेशी हैं और उन्हें भारत छोड़ देना होगा तो आर्यों को भी यह देश छोड़ना होगा। आर्यों को यह देश पहले छोड़ना होगा क्योंकि वे इस देश में पहले आए थे। भारत के अधिकतर मुसलमान और ईसाई यहां के मूल निवासी-दलितों और जनजातियों से बने हैं। इसलिए वे (मुसलमान और ईसाई) ही यहां के (भारत के) असली निवासी हैं और इसके वास्तविक मालिक हैं |


      "मुसलिम इंडिया" के सम्पादक मण्डल में इन्द्रकुमार गुजराल, खुशवन्त सिंह, शाहबुद्दीन, पी.एन. हक्सर, जस्टिस अंसारी सरीखे लोग हैं |


      फ्रैंक एन्थनी ने ४ सितम्बर १६७७ को संसद में मांग की थी :-


      “Sanskrit should be deleted from the Eighth schedule of the Constitution because it is a foreign language brought to this country by foreign invaders, the Aryans.” 


       अर्थ-संविधान की आठवीं अनुसूची में से संस्कृत भाषा निकाल दी जानी चाहिए क्योंकि यह विदेशी भाषा है जिसे विदेशी आक्रमणकारी आर्य ले आए थे


        अंग्रेजों की गुलामी से देश को स्वतन्त्र हुए ५३ वर्ष बीत चुके हैंअब तक इस झूठ को छोड़ा क्यों नहीं गया तथा सत्य को अपनाया क्यों नहीं गया ? क्या 'सत्यमेव जयते' को इसी प्रकार झुठलाया जाता रहेगा ?


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