आर्य
आर्य
धातु और निरुक्ति द्वारा 'आर्य' की व्याख्या
'ऋगतो' धातु से आर्य शब्द नियत्र होता है जिसका अर्थ 'गतिः प्रापणार्थे' यह है, अर्थात् गति-ज्ञान, गमन, प्राप्ति करने और प्राप्त करानेवाले को आर्य कहते हैं।
ईश्वर का पुत्र 'आर्य'
आर्य शब्द की व्याख्या करते हुए यास्काचार्य ने लिखा है'आर्य ईश्वरपुत्रः!'
अथात् आर्य ईश्वर के पुत्र का नाम है।
ईश्वर-प्रदत्त आर्यों की भूमि
वेद में ईश्वर कहता है कि-
अहं भूमिमददामायार्य।
मैं इस भूमि का राञ्च आर्यों के लिए प्रदान करता हूँ। जिस प्रकार लौकिक पिता अपने योग्य पुत्र को राञ्यादि कार्यों को चलाने के लिए सौंपता है, उसी प्रकार ईश्वर ने आर्यों को यह भूमि प्रदान की।
पुन: भगवान् ने आदेश दिया कि “सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ'।
इन्द्रं वर्धन्तो असुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।
अपघ्नन्तो अराव्याः॥
अर्थ-हे परम ऐश्वर्ययुक्त आत्मज्ञानी ! तुम आत्म शक्ति का विकास करते हुए गतिशील, प्रमादरहित होकर कृपणता, अदानशीलता, अनुदारता, ईर्ष्या आदि का विनाश करते हुए सारे संसार को आर्य बनाओ..
विमर्श-भगवान् ने स्वयं वेद में आर्य कौन है और आर्य बनाने का उपाय प्रश्नोत्तर के रूप में दे दिया है।
आर्यों का देश होने से 'आर्यावर्त्त'
मनुस्मृति में आर्यावर्त' देश का उल्लेख मिलता है।
१. सरस्वतीदृषद्वत्योर्देवनद्योर्यदन्तरम् ।
तं देवनिर्मितं देशं, ब्रह्मावर्तं प्रचक्षते॥
२. आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात्।
तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्तं विदुर्बुधाः॥
अर्थ-सरस्वती (सिन्धु) और दृषद्वती (ब्रह्मपुत्रा) इन दो देवनदियों के मध्य में तथा पूर्वसमुद्र (बंगाल की खाड़ी) और पश्चिमसमुद्र (अरब सागर) के मध्य में तथा हिमालय पर्वत शृंखला और विन्धयाचल पर्वतमाला के विस्तारपर्यन्त जो देश बसा हुआ है उसे देवों के द्वारा बसाया हुआ होने से 'देवभूमि', ब्रह्म वेद) का देश (आवर्त्त) होने से 'ब्रह्मावत', आर्यों का देश होने से 'आर्यावर्त्त' और भरतवंशियों से शासित होने के कारण भारतवर्ष' कहते हैं।