आर्ष परम्परा, आर्ष चिन्तन और कुम्भ महोत्सव

  आर्ष परम्परा, आर्ष चिन्तन और कुम्भ महोत्सव


        वेद में जिस कुम्भ का वर्णन है, वह कुम्भ हमारा शरीर हैइस शरीर को 'यज्ञशाला' भी कहा गया हैअनेक मंत्रों में इसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसकी श्रेष्ठता तब और भी बढ़ जाती है जब इसकी पवित्रता जल से निरंतर करते रहने का हम संकल्प लेते हैं। और यह जल यदि शुद्ध और औषधि युक्त गंगा-यमुना का हो तो, क्या कहना। इसी प्रकार आत्मा की पवित्रता वेद मंत्रों का श्रवण, आत्मचिन्तन, सत्संग और धर्म चर्चा के द्वारा होती है। स्पष्ट तौर पर ये दोनों पवित्रता प्रदान करने वाले साधन प्रयागराज की पुण्य सलिलाओं - गंगा-यमुना तट पर लगने वाले कुम्भ से (पूर्व में) प्राप्त होते रहे हैंइस वर्ष का कुम्भ कई मायने में पिछले कुम्भों से भिन्न प्रकार का है। केवल सजावट, सम्मोहन, भव्यता, दिव्यता की दृष्टि में नहीं अपितु आने वाले लगभग 200 देशों के जिज्ञासु बुद्धिजीवियों, मीडिया कर्मियों, श्रद्धालुओं, धर्मप्रेमी भक्तों आदि के कारण भी।


         स्मारिका के प्रकाशन की योजना भी इसी को दृष्टि में रखते हुए बनाई गई। जिला आर्य प्रतिनिधि सभा प्रयाग के सहयोग और आर्य लेखक परिषद् के संकल्प के फलस्वरूप 'आर्ष प्रज्ञा कुम्भ' स्मारिका का प्रकाशन सम्भव हो सका। स्मारिका को कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए अनेक विषयों के विशेषज्ञों/साहित्यकारों की सारगर्भित व व्यावहारिक रचनाओं को सम्मिलित किया गया है। प्रयाग की महत्ता के सम्बन्ध में मीडिया द्वारा रात-दिन सुना-देखा व अखबारों के माध्यम से पढ़ा जा रहा है, फिर भी सामान्य जानकारी प्रयाग क्षेत्र व यातायात की दी गई हैस्मारिका का महत्त्व मात्र कुम्भ तक न बना रहे बल्कि यह हर वर्ग के स्वाध्याय का ग्रन्थ बनें इसका भी प्रयास किया गया है। आर्य लखक परिषद् का हमेशा प्रयास रहा है कि नई पीढ़ी को मलाप दयानन्द, वेद, आर्य, धर्म, अध्यात्म, कर्म, मोक्ष. स्वर्गआदि जैसे चर्चित विषयों को प्रमाण के साथ सुलभ कराया जाए, इसके लिए हमारी डिजिटल पत्रिका 'आर्ष क्रान्ति' को आप परिषद् की वेबसाइट, वॉट्सअप, फेसबुक, ई-मेल आदि से मंगाकर पढ़ सकते हैं। जिला आर्य प्रतिनिधि सभा, प्रयाग ग्रामीण क्षेत्रों में सतत् कार्य करती रहती है। स्मारिका के माध्यम से वहाँ के शिक्षित वर्ग को हमें अपनी बात पहुंचाने में सुलभता होगी। निश्चित ही प्रयाग की सभी कर्मठ व उद्देश्यपरक आर्य समाजों ने कुम्भ में भी प्रचार-प्रसार करके वैदिक धर्म व ऋषि दयानंद की वाणी को लाखों लोगों तक पहुँचने का जो वीणा उठाया है, वे सफल होगी। साथ ही, कुम्भ के सम्बन्ध में वेद में क्या कहा गया है. आइए इसकी चर्चा कर लेते हैं। वेद में कहा गया है। वर्जयेत् तादृशं विषकुम्भं पयोमुखम मित्रम्।


          मुख पर मीठे, पर भीतर जहर से भरे कुम्भ के जैसे मित्र को त्याग देना चाहिए। जल ही जीवन है, अमृत है, सृष्टि का मूल है उसे कुम्भ में संरक्षित रखने का अभिप्राय भी प्रकारांतर से यही है कि हमें जल की शुद्धता बनाए रहना चाहिएहमें जल की महत्ता समझने की आवश्यकता है


          गंगा, यमुना व सरस्वती (विद्या) की त्रिवेणी के रूप में जिस पौराणिक मान्यता को महत्त्व देते हुए पौराणिक जन नदियों के जल से शरीर को और पाप को धोने की भावना लिए हए स्नान करते हैं, वह एक मान्यता को विश्वास परिणित करने का प्रयास करते हैं। लेकिन. मान्यता तो मान्यता होती है। इतना तो ठीक और तर्क संगत भी लगता है कि जड़ी-बूटियों वाले औषधीय जल से शरीर को निरोगी बनाने में सहायता मिल सकती है, लेकिन यह जल पाप कर्मो को भोगने से भी मुक्त कर दे. न तो यह वेद सम्मत है और न तो सामान्य बुद्धि से ही सही लगता है। यही कारण है कि संत कबीर, संत रैदास. राजाराम मोहन राय व महर्षि दयानन्द जैसे अनेक समाज सुधारकों ने इस अंधविश्वास और इसके नाम (गंगा में स्नान से मुक्ति मिलती है) होने वाले पाखण्डों को खुलकर समाज हित में विरोध किया।


          दरअसल, वेद मंत्रों के सही अर्थ न समझने के कारण कुम्भ को अनेक कथाओं से जोड़ दिया गया। उदाहरण के लिए ऋग्वेद के एक मंत्र में पश्चिमी विद्वान् ग्रिफिथ मंत्र में वशिष्ठ के जन्म की कहानी तलाशते दिखाई पड़ रहे हैं तो वेद भाष्यकार सातवलेकर अगस्त्य मुनि का जन्म/मंत्र है - ततोह मान उदियाय मध्यात्। ततो जातमृषिमाहु वसिष्ठम्।। (ऋग्वेद 7/33/13) ग्रिफिथ कहते हैं - Born at the sac- rifice, urged by adorations, both with a common flow bedewed the pitcher/Then from the midst there of there rose up Maan (Agastya) and thence they say was born the says Vasistha. लेकिन यदि इसका व्याकरणिक व्याख्या की जाए तो (यौगिक अर्थ) इस प्रकार होना चाहिए - 'प्राण-अपान रूपी मित्र और वरुण जीवन रूपी यज्ञशाला में बैठकर शतसांवत्सरिक यज्ञ कर रहे हैं। भी इनकी वीर्य रूपी शक्ति प्रवाहित होकर हृदय या मस्तिष्क रूपी कुम्भ में एकत्रित होती है। मस्तिष्क में एकत्रित हुई उस शक्ति से अगस्त्य रूपी कुम्भ में एकत्रित होती हैमस्तिष्क में एकत्रित हुई उस शक्ति से अगस्त्य और वसिष्ठ रूपी ज्ञानियों का जन्म होता है।


           पुराणों में भारत में लगने वाले अर्धकुम्भों, कुम्भों और महाकुम्भों की महिमा का खूब बखान किया गया है। इतना ही नहीं वेद में वर्णित 'कुम्भ' से भी जोड़कर इसे महिमामंडित किया गया हैइससे जन सामान्य में यह मान्यता और धारणा - बलवती होती गई कि 'कुम्भ-स्नान' अवश्य करना चाहिए। गौरतलब है पौराणिक अंधविश्वासों, अंधश्रद्धाओं के कारण 'कुम्भ- महोत्सव' के वैदिक ज्ञान की आवश्यकता और महत्ता की ओर से ध्यान हटता गया! लेकिन यही वह अवसर है जब सभी के लिए कुम्भ वेद सत्संग, योग विद्या अभ्यास, ज्ञानविज्ञान चर्चा, धर्म-अध्यात्म चर्चा, ईश्वर-जीव-चर्चा, संस्कृति संरक्षण चर्चा, साहित्य-दर्शन परिचर्या और पाप-पुण्य चर्चा जैसे अनेक जीवन, समाज, संस्कृति, स्वधर्म उन्नयन का एक पनीत उत्सव बन सकता है जिसका लाभ सबको उठाना चाहिए। सच तो यह है कि भारत वर्ष में जहाँ-जहाँ भी कुम्भ लगता है वहाँ अब ऐसी चर्चाएं, संवाद, सत्संग और उत्सव दिखाई ही नहीं पड़ते हैंइस पर विचार करने की क्या आवश्यकता नहीं है कि 'कुम्भ' की मूल भावना को पुनः प्रतिष्ठित करके 'आर्ष परम्परा को पुनः प्रतिष्ठित किया जाए। जहाँ वेदों की ऋचाओं का मंगलगान, वेदज्ञों द्वारा इहलौकिक और परलौकिक जीवन निर्माण करने की चर्चा, सद् साहित्य का प्रचार-प्रसार, सच्चे साधु- सन्तों के प्रेरक प्रवचन, देश, समाज, संस्कति. ज्ञान-विज्ञान और धर्म की पवित्र धाराएं a प्रवाहित होती दिखाई पड़ें। जन सामान्य को ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, धर्म और अध्यात्म को सही दिशा मिले -- ऐसे 'ज्ञान-- कुम्भ' को प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है।


     स्मारिका का नाम 'आर्ष-प्रज्ञा कुम्भ' रखने का कारण भी हमारा यही रहा है कि इससे आर्ष परम्परा के ज्ञान-प्रज्ञा को प्रतिष्ठा मिले महर्षि दयानन्द इसी प्रयाग के नागवासुकि मन्दिर के सोपानों पर भयंकर माघमास की ठिठुरन भरी रातें केवल कोपीन में काटी थीं, जो ऐतिहासिक घटना के रूप में इतिहास में दर्ज है। जुलाई माह 1874 ई. में सत्यार्थ प्रकाश का शुभारम्भ भी इसी पुण्य भूमि प्रयाग से किया जो वैदिक चालय तदुपरात कला प्रस द्वारा मुद्रित व पं.गंगाप्रसाद उपाध्याय द्वारा प्रकाशित किया गया।


    प्रयागराज अनेक साहित्यकारों, इतिहासकारों, राजनीतिज्ञों, संस्कृतिवेत्ताओं, संस्कृत व्याकरणाचार्यों, वैज्ञानिकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, भाषाविदों, गवेषकों, धर्म - अध्यात्म वेत्ताओं व दर्शनिकों की पुण्यभूमि रही है। भारद्वाज ऋषि सहित अनेक ऋषियों का प्रयाग से सम्बन्ध रहा है। , विश्व पटल पर प्रयाग को ही यह गौरव प्राप्त हैं जहाँ कुम्भ के अवसर पर एक नये नगर की प्रतिष्ठा होती है जहाँ अ अनगिनित मत मतान्तरों, सम्प्रदायों और वर्गों के गणपतिआध अधिपति, मठाधीश, शंकराचार्य, पीठाधीश्वर और न जाने कितने प्रकार के स्वयं-भू मत-अनुपालकों के आगमन व प्रवास यहाँ होते हैं। काश, यदि सभी अपने मतभेद, मनभेद और क्षेत्रभेद मिटाकर एक वैदिक ध्वज के नीचे आकर अखण्ड ज्ञान स्रोत के भण्डार वेदों के प्रचार-प्रसार का कार्य करें तो भारत निश्चित ही 'ज्ञान गुरु भारत के रूप में प्रतिष्ठित हो जाए। आज सबसे बड़ी आवश्यकता सभी तरह के मतभेद, मनभेद और क्षेत्रभेद मिटाकर भारत को अखण्ड और सर्वसामर्थ्यवान बनाने की है।


          स्मारिका में वेद, उपनिषद्, साहित्य, लिपि, यज्ञ, महर्षि दयानन्द, पर्यावरण, भाषा, समाज सुधार, वेद की व्यावहारिकता, योग, धर्म, अध्यात्म चिन्तन, सृष्टि निर्माण सहित अनेक अति महत्त्वपूर्ण लेखों के अतिरिक्त कवियों की कविताएं, प्रेरक प्रसंगों को स्थान दिया गया है। हम सभी लेखक/कवि/कहानीकार/ इतिहासकार/गवेषक/मार्ग दर्शकों/सम्पादक सहयोगियों व विज्ञान लेखक मित्रों के हृदय से आभारी हैं। इसी प्रकार सभी विज्ञापन दाताओं का हृदय से धन्यवाद करता हूँ, जिनके आर्थिक सहयोग के कारण एक अति कठिन कार्य सरलता से पूर्णतः को प्राप्त हो सका।


         और अन्त में मेरे विनम्र अनुरोध को स्वीकार करते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री श्रीयुत् डॉ. सत्यपाल सिंह जी एवं उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्रीयुत् आदित्यनाथ योगी जी ने अपने शुभकामना संदेश भेजकर हमें उत्साहित ही नहीं किया बल्कि गौरव भी प्रदान किया। और इसी क्रम में स्मारिका को मूर्तरूप प्रदान करने वाले भाई कुलदीप कुलश्रेष्ठ जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने अपने अनुभव व परिश्रम से इसे मूर्तरूप प्रदान किया। और सभी आर्य मित्रों, जिला सभा प्रयाग के सभी मित्रों, मुण्डेरा आर्य समाज के प्रधान श्री राजेन्द्र कपूर, कीटगंज आर्य समाज के प्रधान श्री संतोष शास्त्री व नांगलोई आर्य समाज के सभी शुभेच्छुओं सहित सभी को हृदय से धन्यवाद व आभार व्यक्त करता हूँ।


                                                                                           मंगलकामनाओं के साथ


                                                                                                   अखिलेश आर्येन्दु


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