आओ मांगे इन्द्र से


              वेद की एक सूक्ति है- पुलकामो हि मर्त्यः। मनुष्य बहुत इच्छा वाला है। जब से व्यक्ति होश सम्भालता है तभी से कामनाओं का जाल बुनने लगता हैबालक को माँ की गोद और माँ के आँचल की इच्छा होती है। कुछ बड़ा होने पर खिलौने से खेलने की इच्छा जन्म ले लेती है। फिर गली में खेलते बच्चों को देख कर खेलने की इच्छा लग जाती है। इसी प्रकार पढ़ने लिखने की इच्छा, व्यवसाय या नौकरी की इच्छा, फिर विवाह की इच्छा, फिर सन्तानों की इच्छा , उन्हें पाल पोस कर काम पर लगाने की इच्छा, इन्हीं में जीवन बीत जाता है। परन्तु इच्छाओं का अन्त नहीं होताभर्तृहरि ठीक ही लिखते हैं l-


                           बलिभिर्मुखमाक्रान्तंपलितैरङ्कित्तं शिरः।
                           गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णैका तरुणायते।। 


             अर्थात् झुर्रियों से मुंह भर गया है, सिर के बाल श्वेत हो गए हैं, शरीर के अंग शिथिल हो गए हैं किन्तु एक तृष्णा है जो जवान होती जाती है। यह जीवन की वास्तविकता है, तथ्य है, सच्चाई है। प्रभु हमारे अन्तः करण को जनते हैंअतः मानव गलत इच्छा न करे, इसके लिए वे एक मन्त्र में परमेश्वर से प्रार्थना करते है l-


                           इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानिधेहि
                          चित्तिदक्षस्य सुभगत्वमस्मे।
                          पोषं रयीणामरिष्टिं तनूनां
                          स्वामानं वाच सुदिनत्वमह्नम्।।


              ऐश्वर्य के भण्डार प्रभो! हमें श्रेष्ठ धन, शक्ति के सदुपयोग का ज्ञान, सौभाग्य, धन की पुष्टि, शरीर की आरोग्यता, वाणी की मधुरता तथा दिनों का सुदिनत्व प्रदान करो। 


मंत्र में निम्नलिखित वस्तुएं मांगी है। श्रेष्ठ धन।


               मानव जीवन के लिए धन आवश्यक है। बिना धन के शरीर निर्वाह कठिन होता है। धनहीन व्यक्ति हीन माना जाता है। गृहस्थ तो धन के बिना पंगु है। आज तो धन की दौड़ में व्यक्ति आँख मींच कर दौड़ रहा है तथा वह धन कैसा है, इसकी ओर उसका ध्यान ही नहीं है। किंतु वेद लोकोन्नति के साथ परलोकोन्नति को भी आवश्यक मानता है। अतः धन ऐसा हो जो परलोक न बिगाड़े।पापवृत्ति से कमाया गया धन, मन की शान्ति छीन लेता है। अतः वेद ने श्रेष्ठ धन धर्मपूर्वक कमाए धन को मांगा है, पापाचार से अर्जित कमाए धन को नहीं l 


               2. दूसरा मांगा है -चित्तिं दक्षस्य-बल का ज्ञानमनुष्य के पास अनेक बल हो सकते हैं-शरीर बल, मनोबल, बुद्धि बल, आत्मबल, पदबल, राज्यबल, बल आने पर मनुष्य को अभिमान आ जाता है। और वह बलों का दुरुपयोग करना प्रारम्भ कर देता है। बल तो है पर ज्ञान, उसके सदुपयोग का ज्ञान नहीं रहतायह अवस्था भी मनुष्य के पतन का कारण बनती है। इसलिए शक्ति के सदुपयोग की प्रार्थना की है।


              3. तीसरी वस्तु मांगी है, सभगत्व, उत्तम अंगत्व। इसका जहां सौभाग्य अर्थ होता है वहां अन्य अर्थ भी हैसंस्कृत के एक श्लोक के कहा गया है।


                       ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः l
                       ज्ञानवैराग्ययोश्च षण्णां भग इतीरते।l 


अर्थात् सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, शोभा, ज्ञान और वैराग्य इन छः को भग कहते हैं। यहां भी भग के साथ लगा सु उपसर्ग उनकी उत्तमता की ओर संकेत करता है l


             4. रयीणां पुष्टि- धन की पुष्टि,धन का संवर्धनसप्तपदी के तीसरे पैर उठाने के समय कहा जाता हैंरायस्पोषाय त्रिपदी भव-धन की पुष्टि के लिए तीसरा पग बढ़ा। गृहस्थ सुख के लिए जहां श्रेष्ठ धन आवश्यक है वहां उसकी वृद्धि भी आवश्यक है। घर में धन बढ़ता है तो उसके साथ ही मनोबल में भी वृद्धि होती है तथा उसका प्रभाव शरीर के स्वास्थ्य पर भी पड़ता हैधन के क्षीण होने पर मानसिक स्थिति भी शिथिल पड़ जाती है और व्यक्ति अपने को गौरवहीन सा अनुभव करने लगता है l 


             5. तनूनां अरिष्टिम्-शरीरों की आरोग्यता। जीवन के सुख के लिए शरीर का नीरोग रहना बहुत आवश्यक है। कालिदास की यह उक्ति कि-शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्-अर्थात् शरीर धर्म के साधन में प्रथम है, इसी भाव को दर्शाती हैस्वस्थ शरीर से ही व्यक्ति धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। यह वह वाहन है जिस पर बैठ कर जीवात्मा जीवन की यात्रा करता है। अतः शरीर की आरोग्यता भी मांगने की वस्तु है l 


              6. वाचः स्वाद्यानम्-वाणी की मधुरता। संसार को अपने बनाने में मीठी वाणी अमोघ अस्त्र है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-


                     तुलसी मीठे वचन से सुख उपजत चहुं ओर।
                     वशीकरण एक मन्त्र है तज दे वचन कठोर।।  


           अर्थात् मीठा बोलने से चारों ओर सुख उत्पन्न होता है। लोगों को वश में करने का एक ही मन्त्र है और वह यह है कि व्यक्ति कडुवा बोलना छोड़ दे। किसी कवि ने कहा है।


काका का धन हरे कोयल का को देय।


           एक वचन के कारणे जग वश में कर लेय।। कौआ भी बोलता है और कोयल भी बोलती है। न कौआ भी बोलती है।न कौआ किसी का धन छीनता है और न कोयल किसी को धन कोयल किसी को धन देती है। किन्तु मीठा बोलने के कारण संसार को अपने कारण संसार को अपने वश में कर लेती है।


          मीठा बोलने से मित्रों की संख्या बढ़ जाती है तथा कडुवा बोलने से शत्रओं की। जिसके चारों ओर शत्र हो उसे सुख कहां और जिसे चारों ओर मित्र ही मित्र मिलें उसे सुख क्यों नहीं मिलेगा। इसलिए वाणी की मधुरता जीवन में रस भरती है। वेद कहता है।


                    मधुमन्मे निक्रमणं मधुमन्मे परायणम्।
                    वाचा वदामि मधुमभूयासंमधुसंदृशः। अथर्व।


           मेरा निकलना मिठास भरा हो, मेरा आना मधुरता से यक्त हो, मै वाणी से मीठा बोलू और शहद जैसा मीठा बन जाऊं।।
                                                                                                              बन जाऊं।। 7.


       सातवां है अहनां सुदिनत्वम्-दिनों का सुदिन बनना। प्रत्येक दिन आता है और चला जाता है। हम उसका सदुपयोग करें या दुरूपयोग, उसे तो रूकना नहीं है जो दिन आलस्य में गया, अनाचार, अत्याचार पाप पाखण्ड की वृद्धि या कुविचारों में बीता वह कुदिन है। वह न केवल व्यर्थ ही गया अपितु हमारा कुछ खोकर गया तथा पुण्य कार्यों में बीता सुदिन है। क्योंकि इसमें हमने अपने लोक मंगल, परोपकार करके कमाया है। यह हमारा कमाइ का दिन था, व्यर्थ गया दिन नहीं था। सुदिन का एक अर्थ सुख शान्ति और आनन्द का दिन भी है। परमात्मा हमें सुख शान्ति तथा आनन्द से भरे।


          परमात्मा हमें सुख शान्ति तथा आनन्द से भरे। ये वेद की प्रार्थनाएं, कामनाएं कितनी उत्तम हैं। हमारे घरों में श्रेष्ठ, नेक कमाई का, ईमानदारी से अर्जित धन हो। हम निर्धन न रहें किन्तु पापी धनी भी न बनें। हम शक्तिशाली हों, धन बल, प्रतिष्ठा बल, शरीर मन बुद्धि तथा आत्मा का बल हो परन्तु हमें उसके सदुपयोग का, स्वहित परहित में लगाने का, अपने लोक तथा परलोक सुधारने का ज्ञान हो। हम सौभाग्यशाली कहलाएं। हमारे घरों में धन की वृद्धि होती रहे। हम शरीर से स्वस्थ रहें, जिससे धर्म अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो सकें हमारी वाणी में माधुर्य हो जिससे हम मानवों के हृदयों में रस का संचार कर सकें तथा हम बुरे दिनों से,दुख, रोग कठिनाई और आपत्ति विपत्तियों से बचकर शरीर मन आदि से पीड़ित न हों। मांगने वालों,अपनी प्रार्थना में इस मंत्र में वर्णित कामनाओं का भी स्थान दो। तुम्हारा घर मंगल से भर जाएगा। 



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