आँख और कान का दाता ब्राह्मण


आँख और कान का दाता ब्राह्मण


      जनता-जनार्दन की आँख और कान की याचना यह सूचित करती है कि-नव स्नातकों के पास आँख व कान हैं और हमें भी वे आँख व कान दे सकते हैं। मन्त्र में आए चक्षु-पद से प्रत्यक्ष प्रमाण और श्रोत्र-पद से शब्द प्रमाण माना हैइन्हीं दो में ब्राह्मण के कर्त्तव्य कर्म सिमट गए हैं। उसी के लिए भगवान् मनु ने कहा-अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा। दानं प्रतिग्रहश्चैव ब्राह्मणानामकल्पयत्॥मनु० ॥ अध्ययन के लिए चक्षु की आवश्यकता है और अध्यापन के लिए श्रोत्र की। अध्ययन के लिए उसे आँखें खोलनी होंगी और प्रकृति-पुस्तक को पढ़ने के लिए भी परमचक्षु खोलकर हर तत्त्व का ईक्षण और परीक्षण करना होगा; और अध्यापन के लिए जहाँ वह वाक्-शक्ति को खोलेगा, वहाँ अध्येता को कान खोलने होंगे। इसीलिए जनता की पुकार है-चक्षुः श्रोत्रं अस्मासु धेहि। इसी पुकार को सुनकर महर्षि दयानन्द ने सब आर्यों को चक्षु, वाक् और श्रोत्र खोलने को कहापरिणामस्वरूप आर्यसमाज के तीसरे नियम में घोषणा की-वेद का पढ़नापढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।


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