आदर्श भरत


आदर्श भरत


प्रभु कर कृपा पाँवरी दीनी।


सादर भरत सीस धरि लीन्ही।।


नन्दिगाँव कर पर्ण कुटीरा।


कीन्ह निवास धरमधुर धीरा।।


           यहाँ भरत का आदर्श कितना ऊँचा है ! राम ने राज्य त्यागा और वनवास लिया बलात् अर्थात् पिता की आज्ञा से परन्तु भरत ने राज्य-श्री को त्यागा और वानप्रस्थी बना स्वेच्छा से। राम के प्रति ज्येष्ठानुवृत्तिधर्म एवं मर्यादा के पालनार्थ भरत का त्याग राम के त्याग से कम नहीं है किन्तु इस दृष्टि से ऊँचा ही है। धन्य है यह महिमामयी भारत भूमि जिसकी गोद में राम-भरत और लक्ष्मण जैसे आदर्श भाई जन्मे हों।


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