पुरुष को द्विविध से बचावें
पुरुष को द्विविध से बचावें
दुर्भाग्य से जब सास-वधू में ठन जाती है (और आज यह दर्भाग्य लगभग सर्वत्र ही मंडरा रहा है।) तो माता के पुत्र और पत्नी के पति संज्ञक अभागे प्राणी की दशा 'भई गति सांप छछूदरि केरी' वाली हो जाती है। एक ओर वह ममता मूर्ति माँ है जिसने न जाने कितने सुख सपने संजोकर उसे पाला-पोसा है तो दूसरी और वह पत्नी है जिसका एकमात्र जीवन-अवलम्ब वह है। किसे छोडे. किसे अपनाये ? दोनों ही सास वधू को इस गरीब की नीयत पर सन्देह होता है। माँ कहती है- क्या इसी दिन के लिये तुझे पाला था ? पत्नी कहती है- क्या इसी के लिये मेरा हाथ पकड़ा था।
वह जितना सुलझाने का प्रयत्न करता है, डोर उलझती जाती है। सच में इस दीन पर दोनों को ही दया करनी चाहिए माँ को यदि अपने पुत्र से सच्चा प्यार है, तो उसे समझना होगा कि इस पर मेरा ही नहीं उस वधू का भी अधिकार है, जिसका एक मात्र अवलम्ब मेरा यह पुत्र है, उसी प्रकार पत्नी को भी समझना होगा कि मेरे पति पर उसके माता-पिता भाई-बहिन का भी उतना ही अधिकार है जिनकी आशाओं और आकांक्षाओं का वह केन्द्र रहा है। इसका श्रेष्ठतम उपाय तो यही है कि कम से कम इस गरीब पर रहम करके ही वे अपने विरोधों को मिटायें या फिर अपनी समस्याओं के बीच में उसे डालें ही नहीं।