आरोग्य-एकादशी


आरोग्य-एकादशी


श्रद्धेय श्री 'शुभैषी' जी पूर्व पं० हरिप्रसाद जी ओझा-'प्रेम')


ब्राह्म मुहूरत शयन तजि, करिये प्रभु को ध्यान।


              सुखद स्वास्थ्य में होयगी, इससे वृद्धि महान्।।१॥


जल पीकर के शौच जा, टहल मील दो तीन


              निश्चय होंगी आपकी, कई व्याधियाँ छीन।।२।


डाली कीकर नीम की, या पीलू की मूल


              सुदृढ़ स्वच्छ सब दाँत हों, रहै न रञ्चौ शूल।।३।


निर्मल ताजा नीर सों, करि घरषण असनान


              सन्ध्या प्राणायाम करि, हवन करो मतिमान्।।४।


करिए सेवन धूप का, प्रातः खुले (नग्न) शरीर


              बेधत हैं कृमि रोग के, रवि किरणों के तीर।।५।


भक्ष्याऽभक्ष्य पदार्थ कौ, करि पुनि पूर्ण विचार।


             कम खाओ, चाबो अधिक, होय न उदर विकार।।६॥


तदपिहु उदर विकार का-पाओ कुछ आभास।


             उष्णोदक सेवन करो, अष्ट प्रहर उपवास।।७।


प्राकृत वेगों की कबहुँ, गति मति रोको भूल।


             वृद्धि पाएँगी देह में, विविध रोग की मूल।।८।


सुखद स्वास्थ्य के वास्ते, हँसिबौ है अनिवार्य


             शुद्धि, वृद्धि हो रक्त की अरु सञ्चालन कार्य।।९।।


थक जाओ जब तुम कभी, करते करते काम।


             लो अवश्य ही उस समय, यथा योग्य विश्राम।।१०।


नित्य सात घण्टे शयन, कीजै आप अवश्य।


              न्यूनाधिक सोना बुरा, लाता है आलस्य।।११।


आरोग्यप्रद एकदशी व्रत पालो कर नेम।


              मानवता का मूल है सदाचार-व्रत 'प्रेम'।।१२|


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