तल्लो अस्तु व्यायुषम् : हम तीन सौ वर्ष तक जीवें

तल्लो अस्तु व्यायुषम् : हम तीन सौ वर्ष तक जीवें


त्र्यायुषम् जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम्।


यद्देवेषु त्र्यायुषम् तन्नो अस्तु व्यायुषम्।।


 १. जो (जमत्- अग्नेः त्रि-आयुषम्) जमत्-अग्नि का त्रि-आयुष है


२. जो (कश्यपस्य त्रि-आयुषम्) कश्यप का त्रि-आयुष्य है।


३. (देवेषु यत् त्रि-आयुष) देवों में जो त्रि-आयुष्य है


४. (तत् त्रि-आयुषं नः अस्तु) वह त्रि-आयुष्य हमारे लिए हो।


           संसिद्धि-प्राप्त आत्म साधकों का जीवन संयम. सदाचार और साधना का जीवन होता है। इसी से वे पूर्णाय ही नहीं, असाधारणाय हो सकते हैं। भोग रोग ही आयु को क्षीण करते हैं। साधकों के साधनामय जीवन भोग योग से सर्वथा मुक्त होते हैं। अत: उनका आयु अतिशय दीर्घ हो सकता है ।


         मनुष्य का सामान्य पूर्णायुष्य सौ वर्ष का होता है। ज्यों-ज्यों मनुष्य का आयुष्य बढ़ता है, त्यों-त्यों उसका ज्ञान और अनुभव भी बढ़ता है, साथ ही उसके जीवन (शरीर) का परिपाक होता है। उसके परिपक्व जीवन से समाज को पर्याप्त समय तक सुपर्याप्त लाभ पहँच सके, इस दृष्टि से उसे सुन्दर स्वास्थ्य और सुपरिष्कृत जीवन से युक्त रहते हुए सौ वर्ष तो जीना ही चाहिए।


            फिर संसिद्ध आत्म साधकों का संसिद्ध जीवन तो समाज, राष्ट्र और संसार के लिए अतिशय उपयोगी होगा। अपने लिए नहीं तो विश्वहिताय ही उन्हें तीन सौ वर्ष तो जीना ही चाहिए। इसीलिए वेद-माता निर्देश कर रही है कि संसिद्ध आत्मसाधक त्रि-आयुष्य हों। एक आयुष्य सौ वर्ष का होता है। त्रि-आयुष्य १०० x ३ = ३०० वर्ष।


            प्रत्येक साधक को यह आत्मना इच्छा करनी चाहिए और ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि वह तीन सौ वर्ष द्विय और उपादेय आयष्ट प्राप्त करे. ताकि उसके द्वारा संसार का अधिकाधिक हित सम्पादन हो सके। ___ जमत् नाम जठर (उदर) का है। जमत् अग्नि नाम उदर-अग्नि अथवा जठराग्नि का है। आM.


           कश्य के दो अर्थ हैं- अमृत और वीर्य। वीर्य के वर्धन और रक्षण से मनुष्य मृत्यु को परे हटाता हुआ दीर्घ, सुदीर्घ, अति दीर्घ आयुष्य सम्पादन कर सकता है। कश्यप का अर्थ है कश्य-प, अमृत रूप वीर्य का पान करने वाला, वीर्य को उर्ध्वरेता बना ऊपर चढ़ाकर शरीर में पचाने वाला। कश्यप का पर्यायवाची शब्द है वाजपेयी। वाज अर्थात् वीर्य = पेयी अर्थात पीने वाला।


जो जठराग्नि को प्रदीप्त रखते हैं, उनकी पाचन शक्ति बहुत उत्तम रहती है। पाचन शक्ति के उत्तम रहने से शरीर में शुद्ध पवित्र वीर्य पर्याप्त मात्रा में बनता है। वीर्य के कण तीन सौ वर्ष तक नितान्त सुरक्षित रह सकते हैं। शरीर में वीर्य के सामान्य सञ्चय से मनुष्य सौ वर्षों का स्वस्थ सुन्दर आयुष्य लाभ कर सकता है। यदि मनुष्य अपने शरीर में वीर्योत्पत्ति के वर्धन तथा रक्षण की विशेष साधना करे तो वह तीन वर्षों का आदर्श आयुष्य प्राप्त कर सकता है। जो साधक साधना-विशेष के द्वारा तीन सौ वर्षों का आयुष्य सम्पादन करते हैं, वे यहाँ जन) माने गए हैं।


           वैदिक आत्म साधक आत्मकामना करें- (जमत् -अग्नेः त्रि-आयुषं) जठराग्नि का जो तीन सौ वर्षों का आयुष्य (कश्यपस्य यत् त्रि- आयुषं) वीर्योपेयी का जो तीन सौ आयुष्य है, (देवेषु यत् त्रि-आयुषं) द्विय जनों में जो तीन का आयुष्य है, (नः) हमारे लिए (तत्) वही (त्रि-आयुषं) वर्षों का आयुष्य (अस्तु) हो, होवे।


         “प्रदीप्त जठराग्नि और वीर्यपान के द्वारा वाजपेयी द्विय जन वर्षों का आयुष्य सम्पादन करते हैं। हम भी जठराग्नि को दीप्त और वीर्य को अपने शरीरों में पचाते हुए तीन सौ वर्षों का द्विय सम्पादन करेंगे।" _


          अमृतारोही आत्म साधकों को आयु-आरोहण करते हुए के तीन सौ शिखरों को लांघना ही चाहिए


जठराग्नि का जो त्रि-आयुष्य,


वीर्यपान का जो त्रि-आयुष्य,


द्विय जनों में जो त्रि-आयुष्य,


हमें प्राप्त हो वह त्रि-आयुष्य।


सूक्ति- नो अस्तु त्र्यायुषम्। हमें तीन सौ वर्षों का आयुष्य प्राप्त हो।


उठ जाग मुसाफिर


उठ जाग मुसाफिर भोर भई,   


 अब रैन कहाँ जो सोवत है।                 


   जो जागत है सो पावत है  ,                                 


  जो सोवत है सो खोवत है।                                                                                         


 उठ जाग मुसाफिर भोर भई,                                                                           


अब रैन कहाँ जो सोवत है।                                                                                 


 घणा दिन सो लियो                                                                                                 


घणा दिन सो लियो रे                                                                                                   


अब तो जाग मुसाफिर                                                                                               


घणा दिन सो लियो रे।                                                                                         


पण्डा के चक्कर में                                                                                                 


सो क्यूं खो रियो रे                                                                                                     


अब तो जाग मुसाफिर                                                                                             


 घणा दिन सो लियो रे


                                                                    • आचार्य रामगोपाल सैनी


 


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