स्वदेश-स्तुति
स्वदेश-स्तुति
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं उसकी, वह बोस्ताँ हमारा ||
परबत वह सबसे ऊंचा, हमसाया आस्माँ का।
वह सन्तरी हमारा, वह पासबाँ हमारा ||१||
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हजारों नदियाँ ।
गुलशन है जिसके दम से, रश्के जहाँ हमारा ||२|
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम, वतन है हिस्दोस्ताँ हमारा ||३|
यूनानो मिस्रो रूमा, सब मिट गये जहाँ से ।
अब तक मगर है बाक़ी नामोनिशाँ हमारा ||४||
कुछ बात है कि हस्ती, गिरती नहीं हमारी ।
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा ॥५॥
इक़बाल कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में ।
मालूम क्या किसी को, दर्दे - निहाँ हमारा ||६||