बंग-भंग आन्दोलन

बंग-भंग आन्दोलन


और


हिन्दू-मुसलमानों में फूट


      सन् १८५७ की क्रान्ति से लेकर निरन्तर हिन्दू और मुसलमान मिलकर स्वतन्त्रता के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे। सारे देश में राष्ट्रीय भावना का प्रसार हो रहा था। इससे घबराकर अंग्रेजों ने "फूट डालो और राज करो" की कूटनीति अपनायी। अंग्रेजों ने जहां उत्तर-दक्षिण, जात-पांत आदि की भावनाओं को उभार कर भारतीयों में आपस में फूट डालने के प्रयास किये, वहां धर्म के आधार पर हिन्दू-मुसलमानों में भेद उत्पन्न कर दिया। इस भेद को क्रियात्मक रूप देने के लिए लार्ड कर्जन ने १९०५ में बंगाल को दो टुकड़ों में विभक्त करा दिया। पूर्वी बंगाल को मुसलमानों का तथा पश्चिम बंगाल को हिन्दुओं का प्रदेश बना दिया। २० जुलाई १९०५ को बंग-भंग के प्रस्ताव को भारत-सचिव ने स्वीकृत भी कर दिया। इस प्रकार मुस्लिम देश 'पाकिस्तान' का मूल जन्मदाता लार्ड कर्जन था, मुहम्मद अली जिन्ना या इकबाल नहीं, जिन्हें पाकिस्तान का प्रणेता कहा गया है। कर्जन ने १९०५ में ही देश-विभाजन और हिन्दू-मुस्लिमों के हृदय-विभाजन की नींव डाल दी थी।


      बंगाल के साथ-साथ इस विभाजन का सारे देश में तीव्र विरोध हुआ। यहां तक कि सुप्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी इस विरोध में भाग लिया। जिन बंगालियों को अंग्रेजी शिक्षा देकर अंग्रेजभक्त बनाया गया था, वे भी इस विभाजन के विरोध में खड़े हो गये। यह विभाजन स्वदेशी आन्दोलन को तीव्र गति देने में सहायक सिद्ध हुआ। बढ़ते विरोध को देखकर १९११ में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया किन्तु तब तक आन्दोलन इतना जोर पकड़ चुका था कि उसके प्रवाह में पुनः एकीकरण का यह कदम निष्प्रभावी सिद्ध हुआ। बंगाल में बढ़ते आक्रोश और व्यापक स्वतन्त्रता आन्दोलनों के कारण १९११ में अंग्रेज अपनी राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली ले आये। किन्तु क्रान्तिकारियों ने दिल्ली में भी उन्हें चैन से रहने नहीं दिया। (सम्पादक)


      


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