सद्-गृहस्थ का विजय-रथ (चौपाई)


सद्-गृहस्थ का विजय-रथ (चौपाई)


सखा कह धीरज नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि विधि जितब वीर बलवाना।।


सुनहु सखा कह कृपा निधाना। जे हि जय होई सो स्यन्दन आना।।


सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।


बल विवेक दम परहित धीरे। क्षमा कृपा समता रजु जोरे।


ईश भजनु सारथी सुजाना। विरति, चर्म सन्तोष कृपाना।


दान परसु बुद्धि शक्ति प्रचण्डा। वर विज्ञान कठिन को दंडा।।


अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।।


कवच अभरेद विप्र. गुरु पूजा। एहि सम विजय उपाय न दुजा।।


सखा धर्म मय अस रथ जाके। जीतन कहिं कतहुँ रिपु ताके।।


             दो० महा अजय संसार रिपु जीत सकइ सो वीर।


                   जाके अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मति धीर।।


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