वेद के अनुसार नारी भी राजा हो सकती है।

वेदानुसार नारी भी राजा हो सकती है 
         डा.अशोक आर्य 
         वेद ने योग्य व वेद विदुषी नारियों को अध्यापक के रूप में , उपदेशक के रूप में , सेनानायक के रूप में तथा न्यायाधीश के रूप में अपनी सेवाएं देने के लिए जहाँ योग्य माना है , वहां वेद का कहना है कि अपनी योग्यता के कारण स्त्रियाँ भी किसी भी देश का राजा बन सकती हैं | वेद के अनुसार नारियां भी सिंहासन पर बैठ सकती हैं | इस लेख में ऊपर सब पदों का पुरुषवाचक प्रयोग किया गया है क्योंकि इन शब्दों का स्त्रीवाचक शब्द होता ही नहीं | यदि हम अध्यापिका शब्द का प्रयोग करर्ते हैं तो यह पढ़ाने वाली न होकर अध्यापक की पत्नी बन जाता है | इस प्रकार ही उपदेशक तथा सेनानायक के लिए भी प्रयोग होता है | किसी महिला के राजा के पद के सम्बन्ध में वेद इस प्रकार उपदेश कर रहा है :-
                मूर्द्धासि राड ध्रुवासि धरुणा धर्त्रय धरणी  |
                    आयुषे तवा वर्चसे तवा कृषये तवा क्षेमाय त्वा || यजुर्वेद १४.२१ ||
               यंत्री राड यंत्रयसि यमनी ध्रुवासि धरित्री    |   
                इषे  त्वोर्जे  त्वा  रय्ये  त्वा  पोषाय   त्वा    ||   यजुर्वेद १४.२१   || 
         वेद इन मन्त्रों के माध्यम से स्त्री की स्थिति की स्पष्ट घोषणा करते हुए बता रहा है कि ध्रुवा , धरुणा , धरित्री , धत्री, यंत्री , यमनी  आदि यह सब शब्द स्त्री लिंग से सम्बंधित हैं तथा वेद  ने बड़े गर्व से इन शब्दों का प्रयोग किया है | यह शब्द स्पष्ट संकेत देते हुए हमें उपदेश दे रहे हैं कि जब कभी किसी महिला का राज्याभिषेक हुआ होगा अथवा वेदानुसार जब किसी महिला का राजतिलक करना होगा तो उसे इन शब्दों के माध्यम से उपदेश करते हुए कहा जाता है कि क्योंकि तुम अपने कर्तव्यों का पालन करने में सदा दृढ रहती हो , अपने कर्तव्यों के लिए सदा ध्रुव रहती हो , सदा स्थिर रहती हो , इस लिए आज हम तुम्हारा राज्याभिषेक कर रहे हैं |
       मन्त्र राजतिलक के अवसर पर इस महिला को कह रहा है कि हे सम्राज्ञी ! तू में प्रजा को अच्छी प्रकार से धारण करने के गुण हैं ,  तुन प्रजा को भली प्रकार से धारण कर रही हो , इस प्रजा को धारण करते समय तुम दुष्टों का भी दालान कराती हो अर्थात् तुम दुष्ट लोगों का भी दालान करने वाली हो, अपने कर्तव्यों को  समझते हुए तथा  उन कर्तव्यों का पालन करते हुए तेरे में अपनी प्रजा को दुष्टों से बचाने की शक्ति है | तुम इन दुष्टों को नियंत्रित कर , उनसे अपनी प्रजा की रक्षा करने वाली हो  , इस लिए तुझे यह राज्य सिंहासन दिया जा रहा है |
         मन्त्र इसा चर्चा को आगे बढाते हुए कह रहा है कि तेरे आधीन प्रजा रूप जितने भी नर अथवा नारी हैं  , उन सब के लिए दीर्घायु का प्रयास तेरे से ही संभव है | तेरे रक्षात्मक कार्यों से ही इन सब की रक्षा हो पाती है | इसस्दे ही इन की लम्बी व दीर्घ आयु संभव हो पाती है | जब यह प्रा तेरे से रक्षित होती है तो यह  भी एक विचित्र सा तेज अपने में अनुभव कराती है , जिससे यह तेजस्वी होती है | प्रजा का सब प्रकार से कल्याण हो सके , उस का ठीक से भरण पौषण हो सके , इसलिए अपनी प्रजा को सब प्रकार के कृषि के साधन तेरे द्वारा ही उपलब्ध करवाए जाते हैं , जिनकी सहायता से यह प्रजा कृषि से अन्न आदि पैदा कर सम्पूर्ण प्रजा का ठीक से भरण पौषण कर पाती है , उसक आ सब प्रकार का कल्याण होता है , यह भी तेरे ही पुरुषार्थ का परिणाम होता है | 
     इस प्रजा को अभाव की अवस्था में सब प्रकार के अन्न उपलब्ध कराना तेरे ही कारण हो पाता  है | तेरे पुरुषार्थ से भर पेट भोजन करने वाली यह प्रजा शक्तिशाली हो कर अत्यंत पराक्रमी बन जाती है तथा इस सशक्त शक्ति के सामने कोई भी विदेशी आक्रमण करने की सोच भी नहीं पाता |   हे साम्राज्ञी ! यह तेरे पुरुषार्थ का ही परिणाम होता है कि   सब प्रकार के अन्नों की प्राप्ती के कारण सम्पूर्ण प्रजा की सब चिंताएं दूर हो जाती हैं तथा अब वह अपने बचे हुए समय का सदुपयोग करते हुए अपनी शक्ति बढाने का प्रयास करते हैं | विनोद विनोद में ही अनेक प्रकार के शस्त्रों तथा शास्त्रों का भली प्रकार से प्रयोग करना सीख जाते हैं | इस से वह सब पराक्रमी हो जाते है तथा मेहनत करने के स्वभाव वाले बनने से वह अपार धन सम्पति एकत्र करने के लिए भी सक्षम हो जाते हैं |
      जो शक्तियां यह एकत्र करते हैं , उन सब शक्तियों के स्वामी होने से इन का शरीर अत्यंत सुदृढ़ हो जाता है | किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट या रोग इन के पास नहीं आता तथा शत्रु तो इस और देखता तक भी नहीं | सदा प्रसन्न रहने वाली यह प्रजा मानसिक रूपों से भी धनवान हो जाती है | इसे कभी भी कोई मानसिक रोग नहीं घेर पाता | यह आत्मिक रूप से भी पुष्ट हो जाती है | देश की , तेरे राज्य की सब प्रजाओं को यह सब कुछ संभव हो सके इसलिए हे सम्राज्ञी ! तुझे यह सिंहासन सौंपा गया है , तुझे सिंहासनारूढ़ किया गया है |
डा.अशोक आर्य 
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