सिख जाट कैसे बना आर्यसमाजी

सिख जाट कैसे बना आर्यसमाजी 


बड़ी पुरानी बात है। जिला लुधियाना पंजाब) के ग्राम रोड़ा थाना डेहलों में हरिसिंह नाम का एक सिख जाट रहता । उसने तीसरी कक्षा तक उर्दू पढ़ी। अपने ही ग्राम के एक साधु से गुरुमुखी लिपि का ज्ञान प्राप्त किया था। कृषिकार्य करता था। विवाह हो गया।


          जब यह युवक थे तो इनके ग्राम में गुंडूदी निवासी नारायणदासजी ने भागवत कथा आरम्भ की। नर-नारी कथा सुनने जाते तो हरिसिंह भी कथा में श्रद्धापूर्वक जाता था। इन्हीं पण्डितजी से हरिसिंह ने देवनागरी लिपि सीखीउत्तम मन्त्र कौन-सा?- एक दिन आपने पण्डितजी से धर्मचर्चा करते हुए प्रश्न किया, 'जपने के लिए उत्तम मन्त्र कौन-सा है?' जब यह युवक थे तो इनके ग्राम में गुंडूदी निवासी नारायणदासजी ने भागवत की कथा आरम्भ की। नर-नारी कथा सुनने जाते तो हरिसिंह भी कथा में श्रद्धापूर्वक जाता था। इन्हीं पण्डितजी से हरिसिंह ने देवनागरी लिपि सीखी|


     उत्तम मन्त्र कौन-सा- एक दिन आपने पण्डितजी से धर्मचर्चा करते हुए प्रश्न किया, 'जपने के लिए उत्तम मन्त्र कौन-सा है?'


पण्डित नारायणदासजी ने कहा, गुरुमन्त्र गायत्री।' इन्होंने पण्डितजी से प्रार्थना की, मुझे गायत्रीमन्त्र सिखा दें।" 


    पण्डित नारायणदासजी ने कहा, गुरुमन्त्र गायत्री।' इन्होंने पण्डितजी से प्रार्थना की, मुझे गायत्रीमन्त्र सिखा दें।"


     "पण्डितजी जहाँ तक मुझे ज्ञान है, हमारे वंश में कभी मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं किया गया। साधारण व्यवहार में भी हमने बुराइयों से बचने का प्रयत्न किया है। कई ब्राह्मण भी ऐसे मिल जाते है जिनमें कोई दोष होता है। उन्हें गायत्री का अधिकार है, तो हमें क्यों नहीं? यह मेरी समझ में नहीं आता।' पण्डितजी ने उत्तर में कहा, "शास्त्र की ऐसी ही मर्यादा है। इसमें आपकी समझ में आने-न-आने का प्रश्न ही नहीं उठता। शास्त्र में स्त्री और शूद्र को गायत्री का अधिकार नहीं, इसलिए मैं तुम्हें गायत्री नहीं सिखा सकता।"


    इस उत्तर से इनकी सन्तुष्टि न हुई, परन्तु विवश थे, क्या करते? हरिसिंह मन में दु:खी रहने लगा कि मैंने क्या पाप किया है जो मुझे पवित्र गायत्री सीखने व जपने का भी अधिकार नहीं है। कथा समाप्त हुई। पण्डितजी अपने ग्राम चले गये - प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु हरिसिंह का प्रश्न आया-गया हो गया- क्रमशः - प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु


     


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