शासक पुरुषार्थी और सत्यवादी हो

शासक पुरुषार्थी तथा सत्यवादी हो
डा.अशोक आर्य
पुरोहित वास्तव में प्रजा का प्रतिनिधित्व करते हुए राजा को उसके पद की अथवा गोपनीयता की मानो शपथ दिलाते हुए राजा के गुणों का गान करते हुए कहता है कि जिस प्रकार गोपथ ब्राह्मण के उ. ६.३ तथा जैसे शतपथ ब्राह्मण के ६.२.२.५ में स्पष्ट किया गया है, वैसे ही राजा का सुख स्वरूप अर्थात् सब सुखों के देने हारा होने वाला होना चाहिए | यजुर्वेद का यह मन्त्र भी कुछ इस प्रकार का ही उपदेश करते हुए कह रहा है कि :-
कोSसि कतमोSसि कस्मै त्वा कायं त्वा | सुश्लोक सुमंगल सत्यराजन् ||यजुर्वेद २०.४.||
राजा प्रजा को पुत्र के सामान माने
पुरोहित राजा का राजतिलक करते हुए कहता है कि हे राजन् ! प्रजा का सच्चा हितैषी होने के कारण तूं सुख स्वरूप है | सब प्रकार के सुखों को देने वाला है | जब तूं प्रजा के सुखों को बढाता है तो प्रजा अत्यंत प्रसन्न हो कर तुझे चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देती है | तूं केवल सुखकारी ही नहीं है अपितु अत्यंत सुख कारी है | अत्यंत सुख किस प्रकार मिलते हैं ? अत्यंत सुख किसी भी प्रजा को उस समय मिलते है , जब राजा प्रजा को अपने पुत्र के समान समझते हुए , उसकी देख रेख करे | राजा न केवल देश के अन्दर के संसाधनों का प्रयोग करते हुए जन - जन के सुखों की , जन जन के लिए खास्द्य पदार्थों की , जन - जन के लिए धनधान्य की व्यवस्था करे बल्कि वह प्रजा की विदेशी शत्रुओं से भी रक्षा करेगा तो प्रजा अत्यंत खुशहाल , धनधान्य से संपन्न व अत्यंत सुखी हो जाती है | जिस राजा की प्रजा अत्यंत सुखों का अनुभव करती है , वह राजा दीर्घ जीवी होता है | वह राजा लम्बे समय तक राज्य का सुलख भोगते हुए निरंतर राज्य को उन्नति के शीर्ष पर ले जाते हुए प्रजा के मनों को जीतता है तथा सब प्रकार की उन्नति का कारण बनता है |
राजा प्रभु का प्रतिनिधि व सुख – स्वरूप हो
परमपिता परमात्मा को सुख स्वरूप कहा गया है अर्थात् परमपिता परमात्मा सब प्रकार के सुखों की वर्षा करने वाले हैं | हे राजन् ! तुझे प्रजा ने अपना प्रतिनिधि चुना है इस के साथ ही साथ तूं परमपिता परमात्मा का भी प्रतिनिधि स्वरूप बनकर , परमपिता के गुणों को अपने में धारण कर | वह परमात्मा जिस प्रकार प्राणि मात्र के लिए सुख स्वरूप है , उस प्रकार तूं भी सब प्रजा के लिए सुख स्वरूप बन , प्रजा के सुखों को बढाने वाला बन | तेरा सुख स्वरूप बनना ही तेरे लिए यश और कीर्ति को बढाने वाला होगा | जब तूं अपनी प्रजा के सुखों को बढाता है तो तेरी प्रजा कभी तेरे विरुद्ध खड़ी नहीं होती , कभी तेरे से विद्रोह नहीं करती , सब और शान्ति ही शान्ति स्थापित हो जाती है | इस प्रकार के राज्य के राजा के सामने कभी कोई संकट नहीं आता , कभी कोई दु:ख कलेश नहीं आता | इस प्रकार जो धन कष्टों को , रोगों को दूर करने के लिए नष्ट करना था , वह धन बच जाता है और यह बचा हुआ धन राज्य के विकास के लिए काम आता है , सुख के साधनों को बढाने के काम आता है | इस से राज्य तीव्र गति से उन्नति करता है | राज्य की यह उन्नति प्रजा को अत्यधिक सुख देने का कारण बनती है | इससे ही राजा चिरंजीवी होता है | अत: पुरोहित उपदेश कर रहा है कि हे राजन् ! उस सुख स्वरूप परमेश्वर के आदेशों का पालन करने के लिए प्रजा ने तुझे चुना है और इस कारण ही प्रजा के हितों की रक्षा के लिए आज मैं तेरा राज्याभिषेक कर रहा हूँ | इस सत्ता को पाकर तूं ने सदा जनहित का ध्यान रख कर ही प्रत्येक कार्य करना है |
राजा शुभकीर्ति से युक्त हो
हे राजा ! तूं शुभ कीर्ति वाला बन | कीर्ति अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी हो सकती है | मन्त्र राजा को केवल कीर्ति युक्त होने की प्रेरणा नहीं दे रहा अपितु शुभ कीर्ति की प्रेरणा दे रहा है | मन्त्र कहता है तेरी कीर्ति में तेरी निरंकुशता न दिखाई दे | तेरी कीर्ति तेरी क्रूरता के कारण न हो अपितु तेरी कीर्ति का कारण तेरी सुकीर्ति हो , तेरे अच्छे काम हों , तेरे जन हितैषी कार्य हों | इसलिए तूं सदा अच्छे काम कर , जन हित के काम कर , जिससे प्रजा का हित हो इस प्रकार के कार्य कर | इस प्रकार के कार्यों से ही तेरी सुकीर्ति होगी | सर्वत्र तेरे उत्तम गुणों की चर्चा होगी | इस से ही तूं प्रजा के हृदयों का सम्राट बनेगा | तेरे यश व कीर्ति के गुणों का गान सर्वत्र होगा |
राजा सत्यवाणी से युक्त हो
इसके साथ ही साथ हे राजन् ! सत्यवाणी वाला भी बन कर रहना | अपने किसी भी कार्य में सत्य को कभी न छोड़ना | जो कहना वही करना | कहीं ऐसा न हो कि जनता को छलने के कार्य करने के लिए सत्य को ही त्याग दे | कहे तो कुछ किन्तु करे कुछ , इस प्रकार की इच्छा कभी मत करना | इस प्रकार के कार्यों से जनता विरोधी बन जाती है | जिसने भी किसी प्रकार के मंगल का करना होता है , उसे सत्य का ही आश्रय लेना होता है , सत्य को ही साधन बनाना होता है | इसके बिना कभी किसी प्रकार का मंगल कार्य नहीं किया जा सकता | यदि राजा जन कल्याण की घोषनाएं तो बड़ी बड़ी कर दे किन्तु करे कुछ भी न अथवा उसके उल्ट करे तो यह राजा का भयंकर झूठ , उसके लिए भयंकर गलती सिद्ध होता है | जब राजा ने प्रजा से कुछ उत्तम करने का आश्वासन दिया है किन्तु उस आश्वासन को पूरा करने के लिए करता कुछ भी नहीं तो निश्चय ही प्रजा उसके विरोध में आ खड़ी होती है तथा उसे पदच्युत करने के प्रयास करने लगती है , उस राजा के विरोध में खड़ी हो जाती है तथा तब तक विरोध करती रहती है , जब तक उस राजा का समूल नाश न हो जावे | इस लिए मन्त्र के माध्यम से पुरोहित राजा का राज तिलक करते हुए राजा को उपदेश कर रहा है कि वह शुभकीर्ति पाने के लिए सदा सत्यवाणी का ही प्रयोग करे न कि केवल ताली पिटवाने के लिए झूठे वायदे करे तथा उन वायदों को कभी पूरा करने की सोचे तक भी नहीं |
इस प्रकार हे राजन् ! तूं जनता के हित के लिए सत्य का प्रकाशक बन | जो कह , वह सत्य कह , जो कर , वह भी सत्य कर | तूं इस प्रकार का सत्य प्रकाशक बन कि प्रजा तेरी प्रत्येक बात को , तेरे प्रत्येक कर्म को सत्य स्वीकार करे | तेरे प्रत्येक सत्य को पूर्ण करने के लिए प्रजा सदा तेरे आदेशों का पालन करते हुए उसे पूर्ण करने में दिन-रात लगा देवे |
डा. अशोक आर्य
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