सच्च बोलने कि हिम्मत देखनी है तो महर्षि दयानंद को देखो

*सच्च बोलने की हिम्मत रखने वाले ऋषि*


      लाहौर के अन्दर महर्षि दयानंद जी के व्याख्यान चल रहें थे एक बार एक शिव मंदिर में ठहरे उसमें अच्छी लंबी चौड़ी जगह देखकर महर्षि दयानंद जी के शिष्यों ने मंदिर के पुजारी से कहा कि स्वामी जी के व्याख्यान यहीं हो जाए तो अच्छा है ।


     पुजारी प्रसन्न होकर बोले कि बहुत अच्छा रहेगा मैं स्वामी जी के लिए ठहरने की उचित व्यवस्था किए देता हूं सारी व्यवस्था हो गई स्वामी जी ने वही भोजन किया और रात्रि को व्याख्यान हुआ जिसमें लगभग २०००० लोग उपस्थित थे स्वामी जी ने उस दिन अपने व्याख्यान में पाषाण पूजा का जोरदार खंडन किया मंदिर में रहने वाले साधू और पुजारी सभी दंग रह गए ।


      सोचने लगे कि यह तो बहुत विचित्र साधु है हमने इसकी भरपूर सेवा की और यह तो हम पर ही कुल्हाड़ी चला रहा है सब मंदिर वाले नाराज हो गए और फैसला कर लिया कि कल से इस साधु के व्याख्यान यहां नहीं होने देंगे !


      उस दिन स्वामी जी के व्याख्यान में मुसलमान भी थे वह मूर्ति पूजा के खंडन को सुनकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे अगले दिन जब पुजारी ने मना कर दिया तो स्वामी जी के शिष्य जगह तलाश करने लगे तभी एक मुसलमान वहां आया और बोला कि आज का व्याख्यान हमारे यहां करवाओ और स्वामी जी के ठहरने की पूरी व्यवस्था मैं कर देता हूं सब ने उसकी बात को स्वीकार करके स्वामी जी की अनुमति ले ली !


     रात को जब व्याख्यान हुआ तो लगभग ३०००० लोग इकट्ठे थे उस दिन वहां मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक थी स्वामी जी ने अपने व्याख्यान में कुरान की पोल खोलनी शुरू कर दी और मुसलमानों को पूरी तरह नंगा कर दिया मुसलमानों के कान खड़े हो गए वह कहने लगे कि इसे कुरान की धज्जियां उड़ाने को तो हमने नहीं बुलाया , हमने तो बहुदेवतावाद और पत्थर पूजा पर बोलने को बुलाया था परंतु यह तो बिल्कुल उल्टा हो रहा है इसे रोको और व्याख्यान बंद कराओ परंतु स्वामी जी को रोके कौन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?


     स्वामी जी का व्याख्यान चलता रहा और पूरे ३ घंटे तक चला जनता चुपचाप बैठी थी एक भी आदमी हिला नहीं स्वामी जी ने अपनी वाणी को विराम दिया और मंच से उतरे तो वही आदमी जो स्वामी जी को अपने यहां लाया था और सारी व्यवस्था की थी वह हाथ जोड़कर बोला कि स्वामी जी मुझे तो आपने कहीं का भी नहीं छोड़ा सब मुसलमान मुझसे नाराज हैं कि यह किसको बुला ले आया?


    उस समय स्वामी जी के पास हजारों की भीड़ थी स्वामी जी के दर्शन के लिए लोग खड़े थे वह सब भी इस प्रतीक्षा में थे कि स्वामी जी इस मुसलमान की बात का क्या उत्तर देते हैं स्वामी जी ने कहा कि भाई तुम्हें मेरे व्याख्यान का कोई कष्ट नहीं होना चाहिए, मैं जिसका अन्न खाता हूं तो उसके बदले में उसका हित अवश्य करता हूं कल मैंने मंदिर वालों का अन्न खाया तो उनको सच्चा रास्ता दिखा कर उनका उपकार करना आवश्यक था और आज आपका अन्न खाया तो आपको सच्चा रास्ता दिखाना आवश्यक था मैंने कुछ गलत कहा हो तो बताओ?
 स्वामी जी का उत्तर सुनकर सब लोग चुपचाप चले गए !


      मैं वह कलम नहीं हूं जो बिक जाती है चौबारो में !
मैं शब्दों की दीपशिखा हूं अंधियारे उजियारों में !!


   मैं वाणी का राजदूत हूं सच पर मरने वाला हूं !
डाकू को डाकू कहने की हिम्मत रखने वाला हूं !!


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