परमात्मा का नाम षोडशी है

*परमात्मा का नाम षोडशी है।*


महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका के वेदविषयविचार: में यजुर्वेद अध्याय 8, मंत्र.36।। का अर्थ करते हुए हमें परमात्मा के असंख्य नामों में से एक और नाम की व्याख्या करते हैं।


*"यस्मान्न जात: परो अन्यो अस्ति य आविवेश भुवनानि विश्वा।*
*प्रजापति: प्रजया संरराणस्त्रीणि ज्योतींषि सचते षोडशी।।"*
*यजुर्वेद अध्याय 8।  मंत्र 36।।*


अर्थ: (यस्मान्न जा०) जिस परब्रह्म से ( अन्य:) दूसका कोई भी (पर:) उत्तम पदार्थ ( जात: ) प्रकट ( नास्ति ) अर्थात् नहीं है, ( य आविवेश भु०) जो सब विश्व अर्थात् सब जगह में व्याप्त हो रहा है, ( प्रजापति: प्र० ) वही सब जगत् का पालनकर्त्ता और अध्यक्ष है, जिसने  (त्रीणि ज्योतींषि ) अग्नि, सूर्य और बिजली इन तीन ज्योतियों को प्रजा के प्रकाश होने के लिये ( सचते ) रचके संयुक्त किया है, और जिसका नाम (षोडशी ) है, अर्थात् (1) ईक्षण, जो यथार्थ विचार ( 2 ) प्राण, जो कि सब विश्व का धारण करने वाला ( 3 ) श्रद्धा, सत्य में विश्वास ( 4 ) आकाश (5 ) वायु ( 6 ) अग्नि (7 ) जल ( 8 ) पृथिवी ( 9 ) इन्द्रिय ( 10 ) मन अर्थात् ज्ञान ( 11 ) अन्न ( 12 ) वीर्य, अर्थात् बल और पराक्रम ( 13 ) तप, अर्थात् धर्मानुष्ठान सत्याचार (14 ) मन्त्र, अर्थात् वेदविद्या (15 ) कर्म, अर्थात् सब चेष्टा ( 16 ) नाम, अर्थात् दृश्य और अदृश्य पदार्थों की संज्ञा , ये ही सोलह कला कहाती हैं । ये सब ईश्वर ही के बीच में हैं, इससे उसको षोडशी कहते हैं । इन षोडश कलाओं का प्रतिपादन प्रश्नोपनिषद् के छठे प्रश्न में लिखा है ।



महर्षि दयानन्द सरस्वती जी कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका : वेदविषयविचार:


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