परमाणु का भी टुकड़ा हो सकता है

*परमाणु का भी टुकड़ा हो सकता है।*


"महर्षि दयानन्द सरस्वती "


नाश को समझने के लिए यह दृष्टान्त है कि कोई मनुष्य मिट्टी के ढेले को पीस के वायु के बीच में बल से फेंकदें , फिर जैसे वे छोटे छोटे कण आंख से नहीं दीखते । क्योंकि  ( णश ) धातु का अदर्शन ही अर्थ है । जब अणु अलग अलग हो जाते हैं, तब वे देखने में नहीं आते, इसी का नाम नाश है । और जब परमाणु के संयोग से स्थूल द्रव्य अर्थात् बड़ा होता है, तब वह देखने में आता है । और परमाणु इसको कहते हैं कि जिसका विभाग फिर कभी न हो सके । परन्तु यह बात केवल एकदेशी है, क्योंकि उसका भी ज्ञान से विभाग हो सकता है । जिसकी परिधि और व्यास बन सकता है । उसका भी टुकड़ा हो सकता है । यहां तक कि जब पर्य्यन्त वह एकरस न हो जाय तब पर्य्यन्त ज्ञान से बराबर कटता ही चला जायगा ।


*[स्रोत : महर्षि दयानन्द सरस्वती जी कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका,* *वेदविषयविचार:*
*प्रस्तुति: रणवीर आर्य, हैदराबाद]*


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।