क्या वेदों में पशुबलि, पाषाण पूजा-मूर्ति पूजा,अवतारवाद व मांंसभक्षण है

*क्या वेदों में पशुबलि, पाषाणपूजा, मूर्ति पूजा, अवतारवाद व मांसभक्षण है *


सृष्टि के प्रारम्भ में निराकार परमात्मा से वेदों का प्रदुर्भाव हुआ | वेदों ने मानव के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | जीवन के प्रत्येक अंगों का प्रतिपादन वेदों में किया गया है | मानव जीवन पर वेदों का इतना प्रभाव था कि एक युग को वैदिक युग कहा गया | परंतु वेदों में वर्णित मंत्रो का वास्तविक अर्थ न निकालकर करके कुछ लोगों ने अनर्थ निकाल दिया | वेदों का सबसे विवादित विषय रहा है कि क्या वेदों में मांसाहार एवं बलि देने का निर्देश दिया गया है ? जी नहीं ! सनातन का आधार माने जाने वाले वेदों में इन कार्यों का सर्वथा निषेध किया गया है , परंतु सायण, महीधर एवं पाश्चात्य विद्वान मैक्समुलर आदि ने सनातन वेदों को बदनाम करने के लिए उनकी ऋचाओं के अर्थ का अनर्थ कर दिया । विचार कीजिए जिन वेदों में यज्ञों के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है उन वेदों में मांसाहार एवं बलिप्रथा का वर्णन कदापि नहीं हो सकता | यज्ञ में पशुबलि का विधान मध्यकाल की देन है | प्राचीनकाल में यज्ञों में पशुबलि आदि प्रचलित नहीं थे | मध्यकाल में जब गिरावट का दौर आया तब मांसाहार, शराब आदि का प्रयोग प्रचलित हो गया | सायण, महीधर आदि के वेद भाष्य में मांसाहार, हवन में पशुबलि, गाय, अश्व, बैल आदि का वध करने की अनुमति थी जिसे देखकर पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों से मांसाहार का भरपूर प्रचार कर न केवल पवित्र वेदों को कलंकित किया अपितु लाखों निर्दोष प्राणियों को मरवाकर मनुष्य जाति को पापी बना दिया |


आज के आधुनिक युग में जहाँ सनातन विरोधियों ने वेदों के इन्हीं भाष्यों का आश्रय लेकर सनातन की छवि धूमिल करने का कार्य कर रहे हैं वहीं हमारे कुछ विद्वान भी इसी भ्रम में पड़कर वास्तविकता को जाने बिना ऐसे उपदेश देने से नहीं हिचकते | आज लोग वेदों में वर्णित अश्वमेध ,गोमेध , नरमेध,अजामेध आदि यज्ञानुष्ठानों का अर्थ अश्वों , गायों, मनुष्यों आदि की बलि से निकालते हैं | मेध शब्द का अर्थ केवल हिंसा नहीं है |  मेध शब्द के मुख्यतः तीन अर्थ हैं- मेधा अर्थात शुद्ध बुद्धि को बढ़ाना, लोगों में एकता अथवा प्रेम को बढ़ाना और हिंसा ।  मेध से केवल हिंसा शब्द का अर्थ ग्रहण करना उचित नहीं है  । जब यज्ञ को अध्वर अर्थात 'हिंसारहित' कहा गया है तो उसके संदर्भ में 'मेध' का अर्थ हिंसा क्यों लिया जाए ? लड़कियों का नाम मेधा, सुमेधा इत्यादि रखा जाता है, तो क्या ये नाम क्या उनके हिंसक होने के कारण रखे जाते हैं या बुद्धिमान होने के कारण ?


ऐसे ही कुछ स्वार्थी लोग वेद मंत्रो के अर्थ का अनर्थ कर उनमे पाषाणपूजा, मूर्ति पूजा व अवतारवाद सिद्ध करने का प्रयास करते हैं । यजुर्वेद 40 वें अध्याय के08 में मंत्र में तो ईश्वर ने स्पष्ट उपदेश किया है कि वह रंग रूप रहित, काया रहित, जन्म रहित, नस नाडियों के बन्धन में न आने वाला, स्वयंभू, अनादि, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, कर्मफलप्रदाता और सृष्टि के सब पदार्थो व वेदों को प्रगट करने वाला है ।


*वेद के किसी मंत्र में पशुबलि, पाषाण पूजा, मूर्ति पूजा, मांसाहार व अवतारवाद का उपदेश नहीं है । सत्य सनातन वैदिक धर्म का इन मूर्खतापूर्ण मान्यताओं से कुछ लेना देना नहीं । वेदों में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, महादेव आदि सब नाम एक ही परमात्मा के लिये प्रयुक्त हुये हैं ।*


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