दिपावली क्या है और लक्ष्मी क्या है ,दिपावली कैसे मनाना चाहिए


शारदीय नवसस्येष्टि पर्व (दीपावली) की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 


दीपावली की लक्ष्मी कौन - 


"लक्ष दर्शनांकनयोः" इस धातु से 'लक्ष्मी 'शब्द सिद्ध होता है।
'यो लक्षयति पश्यत्यंकते चिह्नयति चराचरं जगदथवा वेदैराप्तैर्योगिभिश्च यो लक्ष्यते स लक्ष्मीः सर्वप्रियेश्वरः' जो सब चराचर जगत को देखता, चिह्नित अर्थात् दृश्य बनाता, जैसे शरीर के नेत्र, नासिकादि और वृक्ष के पत्र, पुष्प, फल, मूल, पृथिवी, जल के कण, रक्त, श्वेत, मृत्तिका, पाषाण, चन्द्र, सूर्यादि चिह्न बनाता तथा सब को देखता, सब शोभाओं की शोभा और जो वेदादि शास्त्र वा धार्मिक विद्वान्, योगियों का लक्ष्य अर्थात् देखने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम 'लक्ष्मी' है । इस परमेश्वर रूपी लक्ष्मी को सभी प्राप्त करें, यही सब धन, धान्य, और ऐश्वर्य का देने हारा है।
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दीपावली क्या है


दीप = दीया
आवली = पंक्तियाँ  दीपावली एक त्योहार है, जो कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शरद ऋतु की समाप्ति में केवल 15 दिन शेष रह जाते हैं। इसके पश्चात् अर्थात् कार्तिक महीने की समाप्ति पर हेमन्त ऋतु का प्रारम्भ हो जाता है। इस रात सभी लोग घरों और उसके आस पास तेल या घी दीपक जलाते है।
इसे शारदीय नवसस्येष्टि भी कहते हैं।
शारदीय=शरद ऋतु का
नव=नया
सस्य = फसल, खेती
इष्टि=यज्ञ
[वासन्ती नवशस्येष्टि = होली]


दीपावली का महत्व-


वर्षा ऋतु में वृष्टिबाहुल्य से घर, वायुमण्डल विकृत, मलिन, दुर्गन्धित हो जाते हैं, वर्षा के अवसान पर दलदलों के सडने, मच्छरों के आधिक्य तथा आर्द्रता (नमी) के कारण ऋतु-ज्वर मलेरिया बुखार आदि रोग बहुत फैलते हैं। शरद-ऋतु के शारदीय-पूर्णिमा, विजयादशमी और दीपावली इन तीन पर्वों के यज्ञ (हवन) से इन रोगों का प्रतिकार होता है।  वायुमण्डल का संशोधन देवयज्ञ (हवन) से होता है, और घर की स्वच्छता रंग-रोगन आदि से होती है। इस समय श्रावण मास की फसल ( उडद, मूँग, बाजरा, तिल, कपास) का आगमन होता है, और इस अवसर पर नव-अन्न से देवयज्ञ (हवन) करने का विधान है।


दीपावली की ऐतिहासिकता-
वाल्मीकि-रामायण के अध्ययन से स्पष्ट होता है, की श्रीराम ने रावण का वध फाल्गुन मास में किया था, और चैत्र मास में अयोध्या लौट आये थे।अतः कार्तिक मास में मनायी जाने वाली दीपावली का श्रीराम के अयोध्या आगमन से कोई सम्बन्ध नहीं। इन दिनों रामलीला के मंचन के कारण यह भ्रांति लोक में फैल गई है। हाँ, दीपावली एक सनातन पर्व जरूर है जो रामायण काल में भी मनाया जाता था। 


 अपने घर व प्रतिष्ठान में अग्निहोत्र/हवन किए बिना आपका दीपावली पर्व अधूरा है ।अतः आज से ही नित्य वा साप्ताहिक यज्ञ का संकल्प लेते हुए वेद पथ के अनुगामी बनें! यही हमारी वास्तविक वैदिक संस्कॄति है। कल्पित देवी लक्ष्मी और गणेश के कल्पित चित्रों को पूजना वेदविरूद है। वस्तुतः लक्ष्मी नाम की कोई स्त्री रुपा देवी वा माता है ही नहीं! अविद्या, अज्ञानता और भेड़चाल में लोग इसे मानकर मिथ्या धार्मिक कर्मकांड और आडंबर कर ईश्वर का उपहास बना रहे हैं। वेदों में गुण कर्म स्वभावनुसार निराकार ईश्वर के कई नाम है।


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