दलित उत्पीड़न

दलित उत्पीडन -


भारत में जो इसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं.. बता रहे हैं कि दलितों पर कितने अत्याचार हुए और मानवाधिकार कि बात कर रहे हैं उनसे मैं सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि आज भारत में दलित कि जनसँख्या सबसे अधिक क्यूँ है?
जिन गोरे ईसाईयों का हमारे देश के दलितों के समक्ष आदर्श उदहारण प्रस्तुत किया जा रहा है उनसे पूछो कि इसाई मिशनरी ने दुनिया में किया क्या है.... उत्तरी अमरीका में वहां के मूल निवासी Red Indians के साथ इन्होने क्या किया? आज Red Indians लुप्तप्राय हो गए हैं! दक्षिण अमरीका में माया सभ्यता फलती फूलती थी वहां आज आज पूर्णतयः लुप्त हो गयी है... इसाई मिशनरी ने वहाँ धर्म के नाम पर कत्ले आम किया! पूरी कि पूरी सभ्यता और मूल निवासियों को मौत के घाट उतार दिया और सब हुआ धर्म के नाम पर....
और न्यू ज़ीलैण्ड में भी इन्होने क्या किया? मिशनरी वालो ने न्यू ज़ीलैण्ड के मूल निवासी माओरी जनजाति के लोगो को समूल नाश कर दिया इतना बड़ा कत्ले आम किया कि वहाँ आज माओरी जनजाति का एक भी व्यक्ति नहीं बचा है... यही हाल ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी Aborgines का हुआ उनका इसाई मिशनरी ने इतनी बुरी तरह कत्ले आम किया कि वह आज जनसँख्या के २ प्रतिशत से भी कम हैं और घने जंगलो में रहने को मजबूर...


जो दलितों के मसीहा बने फिरते है इसाई मिशनरी वाले उनसे पूछो कि गुलामो कि प्रथा का समर्थन मिशनरी ने क्यूँ किया? अफ्रीका में इन्होने क्या किया? क्या आज एक अफ्रीकी या एशियाई मूल का व्यक्ति वैटिकन का पोप बन सकता है?


अमेरिकन एवलेन्जिकल संस्थाओं के एक बड़े वर्ग के लिए भारतवर्ष एक मुख्य लक्ष्य है । यह एक ऐसा नेटवर्क (जाल) है जिसमे संस्थानों, व्यक्तियों और चर्चों का समावेश है और जिसका उद्देश्य भारत के कमज़ोर तबके पर अलहदा पहचान, अलहदा-इतिहास' और एक 'अलहदा-धर्म' थोपना है।
इस प्रकार की संस्थाओं के गठजोड़ में केवल चर्च समूह ही नहीं, सरकारी संस्थाएं तथा संबंधित संगठन, व्यक्तिगत प्रबुद्ध मंडल और बुद्धिजीवी तक शामिल हैं ।


इन पश्चिमी संस्थानों में कुछ बड़े ओहदों पर इन दलित/पिछड़ी जाति (जिन्हें तथाकथित रूप से एमपावर (empower) किया जा रहा है) के कुछ भारतीयों को स्थान दिया गया है – मगर इसका पूरा ताना बाना पश्चिमी लोगों द्वारा ही सोचा समझा व नियोजित और फण्ड किया गया था । हालांकि अब और बहुत से भारतीय लोग और NGOs इन ताक़तों के सहभागी बनाए गए हैं और इन लोगों को पश्चिम से वित्तीय सहायता और निर्देश मिलते रहते हैं ।


यूरोपीय देश अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में से अधिकाँश देश पहले ही “घोषित रूप से ईसाई देश” हैं और अधिकाँश देशों में “बाइबल” की शपथ ली जाती है ।


भारत में “घोषित रूप से” ईसाईयों की आबादी लगभग छह करोड़ है, जबकि अघोषित रूप से छद्म नामों से रह रही ईसाई आबादी का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है ।


आईये एक संक्षिप्त उदाहरण से समझते हैं कि किस तरह से मिशनरी जमीनी स्तर पर संगठित स्वरूप में कार्य करते हैं ।


“पास्टर जेसन नेटाल्स”. नाम से एक साहब ईसाई धर्म के प्रचारक हैं ।
पास्टर जेसन जुलाई से नवंबर 2013 तक भारत में धर्म प्रचार यात्रा पर थे ।


इन्होंने अपने कुछ मित्रों के साथ आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम जिले के कुछ अंदरूनी गाँवों में ईसाई धर्म का प्रचार किया, और इसकी कुछ तस्वीरें ट्वीट भी कीं. जैसा कि चित्र में देखा जा सकता है कि “पास्टर जेसन” एक मंदिर के अहाते में ही ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं और तो और ट्वीट में इस “ईसाई धर्म से अनछुए गाँव” की गर्वपूर्ण घोषणा भी कर रहे हैं।
भोलेभाले (बल्कि मूर्ख) हिन्दू बड़ी आसानी से इन “सफ़ेद शांतिदूतों” की मीठी-मीठी बातों तथा सेवाकार्य से प्रभावित होकर इनके जाल में फँस जाते हैं ।


जैसा कि पूर्व में बताया गया कि भारत मे वामपंथ की जड़े बहोत ही गहरी रही है लेकिन अब जब भारत मे वामपंथी शक्तियां राजनैतिक रूप से शीत युद्ध के बाद कमजोर हो गई तो बाद में यही वामपंथी आज 'सेक्युलरिज्म', 'दलित मुक्ति', 'मानवाधिकार' , ओबीसी चिंतन , पर्यावरणविद , स्त्रीवाद के गिरोहों में शामिल हो गए । अब वामपंथी साहित्य ने दलित साहित्य , ओबीसी साहित्य , स्त्री विमर्श , पर्यावरणविद , आदि का स्थान ले लिया ।
भारतीय साम्यवादियों की हिन्दू विरोधी भावना इतनी उग्र है कि जब सोवियत संघ न रहा तो अब ये अमेरिका संचालित एवलिजलिस्ट की गोद मे जा बैठे है ।


अब जो पुस्तके कभी काल्पनिक कही जाती थी उससे इतिहास लिखा जा रहा , हर जाति का इतिहास लेखन यादव , कुर्मी , ब्राह्मण , जाट , राजपूत , पटेल , other backword classes , नक्सली साहित्य ने दलित साहित्य का रुप ले लिया और आदिवासी साहित्य अभी लेखन में है ।


वैसे यह सभी जानते है कि कांचा इलैय्या , स्वप्न विस्वास जैसे प्रोफेसर ईसाई है और बीफ पार्टी देना विश्विद्यालयो में या महिषासुर मण्डन इन्ही की देन है और ये छुपे हुए नही ये महाशय विदेशों में खुले आम क्रिस्चियन कांफ्रेसेस में हिस्सा लेते है , फंडिंग भी लेते है जिनका जिक्र राजीव मल्होत्रा जी ने भी कई बार किया है ।


महिषासुर को बहुजन नेता के रूप में भी इसी कांचा इलैय्या ने प्रचारित किया था और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली (JNU) में वर्ष 2011 से महिषासुर परिनिर्वाण दिवस मनाने की शुरुआत भी इन्होंने ही की ।


शुरुआत में उसे यादव नेता , फिर दलित नेता उसके बाद आदिवासी गोड नेता , उसके बाद बहुजन नेता कहके प्रचारित किया गया । कभी बंगाल का , कभी कर्नाटक का मूलनिवासी राजा , कभी तमिल नेता मतलब कुछ भी ।


संसद में उस समय स्मृति ईरानी ने महिषासुर दिवस के आयोजन का एक पर्चा पढकर सुनाया था , उन्होंने कहा कि, 'इस पर्चे को पढने के लिए ईश्वर मुझे क्षमा करें । इसमें लिखा है कि, दुर्गा पूजा सबसे ज्यादा विवादास्पद और नस्लवादी त्योहार है। जहां प्रतिमा में सुंदर दुर्गा मां को काले रंग के स्थानीय निवासी महिषासुर को मारते दिखाया जाता है। महिषासुर एक बहादुर, स्वाभिमानी नेता था, जिसे आर्यों द्वारा शादी के झांसे में फंसाया गया। उन्होंने एक सेक्स वर्कर का सहारा लिया, जिसका नाम दुर्गा था, जिसने महिषासुर को शादी के लिए आकर्षित किया और ९ दिनों तक सुहागरात मनाने के बाद उसकी हत्या कर दी।” स्मृति ने गुस्से से प्रश्न किया कि, क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? कौन मुझसे इस मुद्दे पर कोलकाता की सडकों पर बहस करना चाहता है ?


इस पर एक “महिषासुर : एक मिथक का अब्राहमणीकरण” नामक पुस्तक लेखन पर दलित-ईसाई प्रोफेसर बीपी महेश चंद्र गुरु की गिरफ्तारी भी हुई थी , और 'महीखासुर : एक जननायक" , प्रमोद रंजन ने लिखी । "महिशाशूर : पुनर्पाठ की जरूरत" नामक पुस्तिका को प्रेम कुमार मणी , अश्विनी पंकज , दिलीप मंडल ने लिखी । जिसे आयवन कोस्का संचालित फॉरवोर्ड प्रेस और दिलीप मंडल संचालित नेशनल दस्तक पर प्रचारित किया गया ।


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