वेदों में विश्व बंधुत्व-मानव कल्याण का संदेश

वेदों में विश्व बन्धुत्व,मानव कल्याण का संदेश


वेदों में विश्व बन्धुत्व,मानव कल्याण का जो संदेश है वह अन्य किसी पूजा पद्धति (तथाकथित धर्म)में नहीं है।आइये वेदानुकूल आचरण से मानव व इस सृष्टि की रक्षा करें।


जनंविभ्रती..धेनुरनपस्फुरन्ती (अथर्व वेद१२/१/४५) यह भूमि विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले और विभिन्न पूजा पद्धति वाले जनों को भी अपने अंदर ऐसे ही रखती है जैसे परिवार के लोग घर में रहते हैं हमें भाषा धर्म,वेशभूषा,आदि का भेद होने पर भी परस्पर प्रेम से रहना है।


सं गच्छध्वं...सुसहासति (ऋग्वेद१०/१९१/२,४) हे मनुष्यों !तुम सब मिलकर चलो मिलकर वार्तालाप करो हमारे मन मिल जाएं तुम वैसे ही मिलकर कार्यों को सिद्ध करो जैसे विभिन्न क्षेत्रों के देव परस्पर सहयोग से कार्य करते हैं।यहां देव से तात्पर्य सृष्टि में सूर्य,चन्द्र,वायु,पृथिवी,नक्षत्र,आदि और शरीर में मन,चक्षु,श्रोत्र,वाणी,हस्त,पाद,आदि है।


तुम्हारा संकल्प समान हो तुम्हारे हृदय समान हों, तुम्हारा मन समान हो जिससे तुममें परस्पर साथ रहने की शुभ प्रवृत्ति उत्पन्न हो।


दृते दृढं..समीक्षामहे (यजुर्वेद३६/१८)हे प्रभो,मैं मैत्री का व्रत ग्रहण कर रहा हूं,उस पर दृढ़ रहने का सामर्थ्य मुझे प्रदान कीजिये।सब जीव मुझे मित्र की दृष्टि से देखें क्योंकि मैं भी उन्हे मित्र की दृष्टि से देखने लगा हूं।हम सभी मानव एक-दूसरे को मित्र की दृष्टि से देखें।


अस्माकं..दधातन (ऋग्वेद ५०/३७/१२) हम दोपैर वाले और चार पैर वाले दोनों प्रकार के जीवो का कल्याण करें हम सबको ऐसा सुख और आरोग्य प्रभु प्रदान करें कि प्रत्येक जीव खाता पीता तथा बल के कार्य करता रहे।


सर्वमिज्जगद् अयक्ष्मं सुमना असत् (यजु.१६/४)सारा जगत् रोगरहित तथा स्वस्थ मन वाला हो।


विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् (यजु.१६/४८)इस समाज में सभी हृष्ट पुष्ट तथा नीरोग रहें। ओम् शम्।


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