वरेण्य धन की प्रार्थना

                           वरेण्य धन की प्रार्थना 


          संसार में मनुष्यों के पास अन्नभण्डार, पशु, पुत्र यान, सामान, मुद्राएँ (रुपया-पैसा), प्रतिष्ठाप्रभाव, साख आदि नानाप्रकार के ऐश्वर्य होते हैं और यह भी ठीक है कि इस धन-ऐश्वर्य द्वारा ही संसार के बड़े काम चल रहे हैं, सुख भोगे और भुगाये जा रहे हैं, पर ऐसे लोग भी बहुत हैं जिनका यह धन उन्हें सुखी और अच्छा बनाने की जगह उन्हें दुःखी और अवनत कर रहा है। धन के कारण उनके शरीर, मन और आत्मा निर्बल होते जा रहे हैं। ऐसे भी हैं जिनका धन उनके ही नहीं किन्तु अन्यों के भी विनाश का कारण हो रहा है। ऐसे धन को पाकर हम क्या करेंगे ?यह वरेण्य धन नहीं है। इसका तो न होना अच्छा है। एवं, कइयों का धन इतना निस्तेज होता है कि यदि वह उन्हें हानि नहीं पहुंचाता है तो कम-से-कम उन्हें लाभ भी नहीं पहुँचाता। उनके धन में शक्ति नहीं होती, वह उनके उपयोग में नहीं आता या नहीं आ सकता । वह ऐसा ही है जैसाकि मिट्टी ठेर । ऐसे धन को प्राप्त करके हम क्या करेंगे? अतः हमें तो अपने वरेण्य और द्युतिवाले धन का ही दान करो।


               पर इस जटिल संसार में ऐसे सच्चे धन का पता पाना हमारे लिए लगभग असम्भव है। परिमित ज्ञानवाला मनुष्य यह कहाँ तक जान सकता है कि धन कैसा है ? इसीलिए हे परमेश्वर! तुम्हीं कुछ ऐसा करो कि हमारे पास वरनेयोग्य और तेजस्वी धन का ही आगम हो । तेरी समझ ही निर्भ्रान्त है, पक्की है, अतः हम तो कहते कि तू जिसे सच्चा धन समझता है उसे ही हमारे पास आने दे । जो धन वरणीय नहीं है, जो तेजरहित है उस कुत्सित धन से हम अपने को भरता नहीं चाहते। ऐसा धन चाहे कितनी मात्रा में हमारे सामने आये, चाहे कितने प्रलोभक सुन्दर रूप में हमारे सामने आये, उसे हम कभी पाना नहीं चाहते, उससे हम बचना चाहते हैं। ऐसा कुत्सित धन हमारे पास जमा न हो, अतः तुम ही ऐसा करो कि हमारे पास वही धन खिंचकर आये, वही धन संचित हो जो वरनेयोग्य है, जिससे हमारे शरीर, मन, आत्मा की वास्तविक उन्नति हो, जिससे सब लोगों का कल्याण हो और जो कभी निस्तेज, निरर्थक और भाररूप हो । हे परमैश्वर्यवाले!  हमसदा ऐसे ही धन प्राप्त करना चाहते हैं


 


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